Tyohar kavita

कहां अब पहले से त्यौहार | Tyohar kavita

कहां अब पहले से त्यौहार ( Kahan ab pehle se tyohar )     कहां अब पहले से त्यौहार रहा ना अपनापन प्यार बड़ों का होता सम्मान लुप्त हो रहे सभी संस्कार   सद्भावों की बहती गंगा घट घट उमड़ता प्यार बहन बेटी बुजुर्गों का होता तब आदर सत्कार   अतिथि को देव मानते पत्थर…

जिंदगी को महकाना

जिंदगी को महकाना | Tyohar Par Kavita

जिंदगी को महकाना ( Zindagi ko mehkana )   त्योहारों के दिन आते ही गरीब की मुश्किलें बढ़ती जाती है अच्छे कपड़े,अच्छे भोजन नाना प्रकार के सामग्रियों की जरूरत गरीब की कमर तोड़ देती है अभावग्रस्त जीवन चूल्हे की बुझी राख भूख और बेचारगी से बिलखते बच्चे हताशा और निराशा के अंधेरे में तड़फता बिलबिलाता…