जिंदगी को महकाना
जिंदगी को महकाना

जिंदगी को महकाना

( Zindagi ko mehkana )

 

त्योहारों के दिन आते ही
गरीब की मुश्किलें बढ़ती जाती है
अच्छे कपड़े,अच्छे भोजन
नाना प्रकार के सामग्रियों की जरूरत
गरीब की कमर तोड़ देती है
अभावग्रस्त जीवन चूल्हे की बुझी राख
भूख और बेचारगी से बिलखते बच्चे
हताशा और निराशा के अंधेरे में
तड़फता बिलबिलाता जीवन गरीब का
मन कचोटता है उस गरीब का
देखकर अपने बच्चों की हालत
दूसरी तरफ विलासितापूर्ण जीवन
सांस्कृतिक परम्परा आधुनिकता की बलि चढ़ रही
मंहगे महंगे तोहफ़ों का लेन देन का
झूठा दिखावा आरम्भ हो जाता
ये महंगे तोहफे कभी भी
रिश्तों को मजबूत नही बनाते हैं
रिश्ते अपने रिश्तेदारों से
अपनी समृद्धि का प्रदर्शन करता हुआ दिखता है
रूपयों में इतनी ताकत सच्ची होती
रिश्तों की सच्चाई कुछ और ही होती
भावना और भावनाओं को समझने क्षमता नहीं
वरना अपने व गैरों की पहचान होती
एक बेहतर रिश्ते को
तोहफों कभी जरूरत नहीं होती है
रुपयों और तोहफों की जरूरत गरीबों को होती है
चंद रुपये या तोहफे
किसी गरीब की जिंदगी को महका सकती है
उनकी दुआओं का अम्बार
किसी अलौकिकता से कम नही होती
चेहरे पे रिश्तों के नकली मुखोटे को उतार फेंको
रिश्तों को सरलता देकर उनके मायने दो
किसी गरीब को उसके चेहरे  मुस्कुराहट दें
लाखों करोड़ों की दुआ बटोरिये
जिंदगी जीना आसान होगा मेरे दोस्त
?

मन की बातें

कवि : राजेन्द्र कुमार पाण्डेय ” राज “

प्राचार्य
सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
बागबाहरा, जिला-महासमुन्द ( छत्तीसगढ़ )
पिनकोड-496499

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