Tyohar kavita
Tyohar kavita

कहां अब पहले से त्यौहार

( Kahan ab pehle se tyohar )

 

 

कहां अब पहले से त्यौहार रहा ना अपनापन प्यार
बड़ों का होता सम्मान लुप्त हो रहे सभी संस्कार

 

सद्भावों की बहती गंगा घट घट उमड़ता प्यार
बहन बेटी बुजुर्गों का होता तब आदर सत्कार

 

अतिथि को देव मानते पत्थर की पूजा करते
आन बान शान से जीते वचनों की खातिर मरते

 

वैर भाव भुलाकर मिलते दिवाली होली आती
एक रंग में रंगकर सारे लबों पर मुस्काने छाती

 

सदा  सादगी  से जीवन की नैया पार होती थी
किस्मत रहती साथ सदा बेचेनिया तब सोती थी

 

दिल से दिल का रिश्ता था साथ निभाया जाता था
सेवा  और  कर्म  भूमि  का  पाठ पढ़ाया जाता था

 

सनातन संस्कृति हमारी कैसा हो गया व्यवहार
बेगाना सा रिश्ता हुआ अब न रहे वो तीज त्यौहार

 

    ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

मनभावन कविता | Manbhavan kavita

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here