भारतीय अपराजिता नारियों की स्थिति हेतु प्रयासरत व चिंतनशील हूँ
आधुनिक भारत के समाज की तमाम कुरीतियों के विरोध में अहम भूमिका निभाने वाले जाने-माने प्रतिष्ठित समाज-सुधारक : युगपुरुष कविवर श्री “सूर्यदीप” कवि-हृदय की यही मेरी आकांक्षा है कि सद्भाव के पुष्प निरंतर यहाँ खिलते रहें।
हाँ, वास्तव में, लिखना एक महान कला है। आज की अपनी जंग तलवारों से नहीं बल्कि स्वयं की जीवंत क़लम से ही जीती जा सकती है। “मेरी अभिलाषा और सबसे बड़ी ज़रूरत है कि समाज को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है और मैं सांसारिकता से थककर भारतीय संस्कृति के अनुरूप एक दार्शनिक बन गया हूँ।
मैं पहले से ही संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता हूँ और समाज के सामने यथार्थ को दर्शाता हूँ। साहित्य समाज का दर्पण है और मैं समाज में परिवर्तन लाने और नकारात्मकता, हताशा और विसंगतियों को दूर करने के लिए प्रयासरत हूँ।
मैं भारतीय नारियों की स्थिति के लिए चिंतित हूँ और उनके अधिकारों के लिए लड़ रहा हूँ। मैं सदैव मनुष्यता, स्वतंत्रता और समानता की शिक्षा देता हूँ और नारियों के अधिकारों और शिक्षा के लिए काम करता हूँ।
मैं समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए काम करता हूँ और सामाजिक गलतियों को सुधारने के लिए प्रयासरत हूँ। मैं समाज में बदलाव लाने के लिए निरंतर प्रयास करता हूँ और सामाजिक अपराध, नारी अपराध और भ्रष्टाचार के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करता हूँ।
क्या हमें अपने भावों को दबाना चाहिए या संसार की स्थितियों के प्रति उदासीनता अपनानी चाहिए? साहित्य हमें अपने भावों को व्यक्त करने का मौका देता है ताकि वे हमारे भीतर दबे न रहें।

सूर्यदीप
( कवि, साहित्यकार व शिक्षित समाज-सुधारक, समाजसेवी, मानवतावादी, प्रखर चिन्तक, दार्शनिक )
नवोदय लोक चेतना कल्याण’समिति – बागपत
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