Vishwa Cancer Divas
Vishwa Cancer Divas

एक घटना प्रसंग मैं कुछ समय पूर्व दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराज जी स्वामी ( श्री ड़ुंगरगढ़ ) के सानिध्य में दोपहर शाम को स्वाध्याय लेखन आदि करता था ।

उस समय शाम को मेरा मुनिवर के साथ में कुछ महिलाओ का नियमित स्वाध्याय का क्रम चलता रहता था । मुनिवर का स्वास्थ्य आदि कारणों से व मेरा अपने पाँव की बीमारी से साथ में स्वाध्याय का क्रम टूट गया था ।

मुनिवर देवलोक हुए उसके बाद उसमे से एक महिला के अचानक कैसर आ गया बीमारी का ईलाज हुआ फिर सही क्रम शुरू हुआ था कि वापिस महिला के पुनः कैसर आ गया और वो भी संसार से विदा हो गयी । अब प्रश्न होता है कि आखिर कैंसर है क्या है ?

कैंसर कोई एक बीमारी नहीं है बल्कि बहुत सारी बीमारियों का समूह है। कैंसर हमारे शरीर में मौजूद कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को कहते हैं। कोशिकाए हमारे शरीर में मौजूद छोटी इमारतें हैं। कोशिकाएं अपने काम में विशेषज्ञ होती हैं।

उदाहरण के लिए हमारी आंतों में ऐसी माँसपेशी वाली कोशिकाएं होती हैं जो उन्हें संकुचित करती हैं, माँसपेशी कोशिकाओं को कंट्रोल करने के लिए तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं, और भोजन को सोखने के लिए अन्य कोशिकाएं होती हैं।

शरीर के भीतर आंतों और अन्य हिस्सों में अन्य कई तरह की कोशिकाएं मौजूद होती हैं। आमतौर पर, आपके शरीर की नई कोशिकाएं केवल मृत या बेहद बूढ़ी हो चुकी कोशिकाओं की जगह लेने के लिए बढ़ती हैं। प्रत्येक नई कोशिका अपनी अभिभावक कोशिका के समान दिखती और काम करती है।

कैंसर से प्रभावित (मैलिग्नेंट) कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं से अलग होती हैं, क्योंकि वे बहुत तेज़ी से बढ़ती है । इनकी संख्या बढ़ती रहती है बेशक ये जिस अंग में मौजूद होती हैं, उन्हें और कोशिकाओं की ज़रूरत नहीं होती ।

ये असामान्य दिखाई देती हैं और आमतौर पर ठीक से काम नहीं करतीं ।वे जहां की होती हैं वहां टिकती नहीं वे आसपास के अंगों पर आक्रमण करती हैं या आपके शरीर के सुदूर हिस्सों तक फैल जाती हैं ।

कुछ तरह की कैंसर कोशिकाएं आपस में समूहबद्ध होकर ट्यूमर नामक ठोस ढेर में परिणत हो जाती हैं। हालांकि, सभी ट्यूमर कैंसर से प्रभावित नहीं होते। ट्यूमर जो कैंसर से प्रभावित नहीं होते उन्हें मामूली (हानिरहित) कहा जाता है।

जब डॉक्टर कैंसर के बारे में बात करते हैं कि कैंसर कितना बड़ा है और वो फैला है या नहीं और अगर फैला है, तो कहां फैला है। कुछ कैंसर अन्यों की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ते और फैलते हैं ।इन्हें आक्रामक कैंसर कहते हैं। कैसर से मृत्यु क्यों होती है ?

अगर आप स्वस्थ हैं और 15 से 20 पाउंड का वजन बना लेते हैं, तो आप शायद ठीक महसूस करेंगे। हालांकि, केवल कुछेक पाउंड की कैंसर कोशिकाएं आपको मारने के लिए काफी हैं, अगर वे शरीर के किसी महत्वपूर्ण काम को रोक देते हैं, तो पदार्थों को छोड़ सकता है, जो अन्य अंगों के काम को प्रभावित करते हैं ।

कैंसर के बढ़ने के लिए खतरनाक जगहों में शामिल हैं – फेफड़े , सांस लेने में परेशानी, पेट आपकी आंतों का ब्लॉक होना , दिमाग आपकी खोपड़ी में उच्च दबाव , प्रमुख रक्त वाहिकाएं भारी या जानलेवा खून का रिसाव आदि – आदि ।

बोन मैरो (आपकी हड्डियों के भीतर मौजूद खोखलापन, जहां रक्त कोशिकाएं बनती हैं) । खतरनाक रूप से ब्लड काउंट में कमी ( एनीमिया) अत्यधिक रक्त्स्राव, इंफ़ेक्शनों से लड़ने में परेशानी, कमज़ोर हड्डियां, जो आसानी से टूट जाती हों ।

कैंसर किसी खतरनाक जगह में बढ़ रहा हो या नहीं, दोनों ही मामलों में कैंसरों द्वारा छोड़े जाने वाले पदार्थ समस्याएं पैदा कर सकते हैं। कुछ पदार्थ निम्नलिखित काम करते हैं जैसे – आपसे आपकी भूख छीन लेते हैं , वज़न बहुत ज़्यादा कम हो जाता है, इंफ़ेक्शनों से लड़ने में परेशानी होती है आदि – आदि ।

कैसर रक्त कोशिकाओं के निर्माण में रुकावट डालता हैं , ब्लड काउंट कम हो जाता है आदि – आदि । कैसर आपके शरीर के रासायनिक संतुलन में हस्तक्षेप करते हैं व दिल का काम करना असामान्य हो जाता है, कोमा मे पहुंचा देता है आदि – आदि ।

कैंसर किसी भी कोशिका से विकसित हो सकता है, ये कोशिकाएं आपके खून, हड्डियों और अंगों में कहीं भी हो सकती हैं। हर तरह का कैंसर अपनी उद्गम कोशिका के प्रकार के आधार पर अलग होता है। कैंसर का नाम उस अंग के नाम पर होता है जहां से उसकी शुरुआत हुई थी।

उदाहरण के लिए फेफड़ों का कैंसर आदि – आदि । अभी विगत कुछ दिन पूर्व ही मुझे किसी ने कहा की मेरे साथ वाले लड़के के पापा के फेफड़ों का कैंसर हो गया है । इस तरह से कैंसर शरीर में कही भी हो सकता हैं ।

ऋतुनुसार हम अपने खानपान, पहनावें आदि पर ध्यान देकर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते है । जिसे सही से जीवन में अपनाकर हम निरोगी रह सकते हैं और अपने रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाकर हर बीमारी से प्रतिकार करने के लिए सक्षम रह सकते हैं।

प्रकृति को हम अपने अनुसार ढालने की कोशिश न करें, बल्कि हम प्रकृति के अनुसार ढलने के प्रयास करें क्योंकि हम प्रकृति का अभिन्न अंग है, उसके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है ।

हवा,पानी , वनस्पति आदि के बिना हमारे जीवन को कल्पना भी नहीं कि जा सकती है। हम सही मार्ग का अनुसरण करके निश्चित ही स्वस्थ रह सकते हैं और वर्तमान में जिस बीमारी की स्थिति से हम सभी थोड़े डरे हुए है या नहीं भी, हमें डरने की आवश्यकता ही नहीं होगी, जब हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बहुत शक्तिशाली होगी।

हां, सावधानियाँ बरतने में हमे बहुत सतर्क रहते हुए निर्भीक होकर इससे बाहर निकलना है।हम सब जीवों के प्रति अभय के भाव रखते हुए अनुपालना करते हुए स्वयं और आस पास के लोगों को भी स्वस्थ बनाए रखने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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