वक्त रुका ही नहीं कभी किसी के लिए
वक्त रुका ही नहीं कभी किसी के लिए
ऊंचे नीचे पथरीले रास्ते का प्रारब्ध सफर
कारवां गुजर जाने के बाद धुंधला दिखा
जीवन का बहुमूल्य अंश बीत जाने पर
अस्थिर और अविचर सी दशा में रुका
बीते लम्हेंआंखों में कैद कुछ इस तरह हुए
डूबे जैसे दरिया में हम समंदर छोड़कर
दिल की फितरत थी इसीलिए संभल गया
अश्क बह आये सभी नैनो से छलक कर
तूफाँ ने मोड़ दिया हवाओं का रास्ता
साहिल ही डूब गया कश्ती को छोड़कर
कब का छोड दिया उसे दुआओं में मांगना
वह मुस्कुरा रहे थे हमें गमें लबरेज़ देखकर
रोशन किए थे हमने सभी चराग उम्मीद के
बुझा के दीप राह के वो आगे निकल गए
भटका किए यहां वहां उनकी तलाश मे
छूटे सभी किरदार जब मंजिल के पास थे
हो गए हैं अकेले इसी शहर गुलिस्ताँ में हम
अब भी खड़े हैं हम वहीं ,पता हाथ में लिए
करके याद उनको कुछ अश्शार लिखे हैं
खिजाँ से खुश्बूदार कुछ गुलाबो को तोड़ के
कर गए हैं अकेला कुछ इस तरह से हमको
नदिया बिछुडे सागर से इक बेचैन प्यास लिए
वो बेशक चले गए थे सरेराह छोड़कर
सजदे में उसी शक्स के अब तक हम झुके
मालूम, नहीं आएंगे वो , मुड़कर इस गली
क्यूं उनको, लगा रही हूँ ,आवाज बेवजह
क्यूं लेता है वो अजनबी मेरे हमदम का नाम
दिल तोड़ना तेरा नहीं है कातिलो का काम
इस छोटे से जीवन का इतना सा फ़साना है
नाव कागज की है और उस पार जाना है
ना जिंदगी के लिए ना मौत के लिए
वक्त रुका ही नहीं कभी किसी के लिए
☘️
लेखिका : डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर – देहरादून
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