दिल को तड़पना है बस अश्क बहाने है
( Dil ko tadapna hai bas ashk bahane hai )
इस दिल को तड़पना है बस अश्क बहाने है।
टूटे इन दिल के तारों से नए गीत सजाने है।
अंतर्मन की पीड़ा है दर्द लबों तक आने है।
भावों का सुमन हार सुर संगीत सजाने है।
अश्कों के मोती झरते नैनो के बहाने हैं।
दिल की गंगा निकले तट लगे सुहाने है।
इस दिल को मचलना है लब प्रेम तराने है।
दिल की हसरत को अब सावन बरसाने है।
दिल पीर भरा सागर अश्क दर्द फसाने है।
नयनों की भाषा को दिल के दर्द बताने है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )