टीआरपी का खेल!
टीआरपी का खेल! ( व्यंग्य )
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टीआरपी के खेल में अबकी
धरे गए हैं भैया,
देखना है अब कैसे उन्हें बचाते हैं सैंया?
चिल्ला चिल्ला कर तीन माह से-
बांट रहे थे इंसाफ!
हाईकोर्ट ने पल में मिला दिया उसे खाक।
कह दिया रिया ‘ड्रग सिंडिकेट’ का हिस्सा नहीं,
बनाओ स्वामी कहानी कोई और नई!
एम्स के डॉक्टरों ने भी साफ कर दिया है,
सुशांत ने ‘आत्महत्या’ ही किया है।
नहीं हुई है उसकी हत्या,
खुद उसने की है अपनी हत्या।
लेकिन टीआरपी के चक्कर
और बिहार चुनाव के मद्देनजर
मामले को ऐसे मोड़ा!
अप्रत्यक्ष रूप से महाराष्ट्र सरकार को भी घेरा।
उद्धव और संजय को बनाया निशाना,
अब जाकर अर्णव ने है उनको पहचाना!
किसी की चुप्पी पर उठाए सवाल,
तो किसी के बयान पर मचाए बवाल;
बोलो सलमान अब क्या है तुम्हारा ख्याल?
छज्जा किसी का टुटा,
और मीडिया ने टीआरपी लूटा।
तोड़फोड़ का ठीकरा बीएमसी पर फोड़ा,
देशभक्त और झांसी की रानी से जोड़ा!
अंधभक्तों के कारण-
चैनलों की बढ़ी है मनमानी,
रोज दिखाते हैं!
कुछ ना कुछ मनगढ़ंत कहानी।
टीआरपी बढ़ाने को करते हैं ढ़ेरों उपाय,
पैसे बांटे , छेड़ें डाटा!
क्या क्या तुम्हें बताऊं?
जिसे बताने खुद कमिश्नर मीडिया को बुलाए,
बोले ! अभी कुछ ही को गिरफ्तार हैं कर पाए।
सिंडिकेट बड़ा है,
तलाश जारी है!
इनके पीछे कौन खड़ा है?
जल्द होंगी कुछ और गिरफ्तारियां-
तब करेंगे पूर्ण खुलासा,
तब तक दिखाएं स्वामी?
जूही चम्पा और बिपाशा!
टीआरपी बन गया है तमाशा?
मनोरंजन के नाम पर जनता को-
थमाया जा रहा है बताशा।
?
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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