मुट्ठी भर गुलाल | Laghu Katha Mutthi Bhar Gulal
“आओ सोमेश्वर आओ, आज होली का दिन है। जब तक जिंदगी है तब तक तो मालिक और मजदूर चलता ही रहेगा। लेकिन बैठो, मालपुए और दहीबड़े खाकर अपने घर जाना।” परमेश्वर ठाकुर ने सोमेश्वर को प्यार से बुलाते हुए कहा।
“हांँ मालिक, क्यों नहीं,जरूर खाकर ही जाएंगे।” वह कुछ दूर बैठते हुए कहा।
“दूर बैठने का आज दिन नहीं है सोमेश्वर, जब तुम आज भी दूर ही बैठोगे तो फिर हृदय की होली कैसी। होली तो हृदय से होती है न?” खुले हृदय से उन्होंने कहा। जैसे उमंग हिलोरें मार रही हो।
“फिर भी तो हम आपके सेवक हैं न मालिक।” उसने दबे लेहजे में कहा।
“तुम ऐसे नहीं समझेगा मेरी बात।” इतना कहते हुए ठाकुर उठे और सोमेश्वर को मुट्ठी भर गुलाल सिर से मुँह तक पोत दिए और ,,,, और सोमेश्वर भी उनका वही हाल कर दिया। मुट्ठी भर गुलाल से।
आस पास के लोग हँस रहे थे यह मुट्ठी भर गुलाल लगे हुए देखकर।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड