In Ankhiyon ko
In Ankhiyon ko

इन अँखियों को समझाओ तो

 

किसे नहीं खेलें होली बताओ तो
पुछती है कोयल बताने आओ तो
सभी आये लेकिन वो नहीं आए
इन अँखियों को भी समझाओ तो।

इंतजार के दिन दिखाए बहुत तुम
नहीं चाहिए था, सताए बहुत तुम
कैसे करें तारीफ झूठे हम बोलो
कहाँ कहकर अपनाए बहुत तुम।

जैसे तैसे मेरे लट बिखरे पड़े हैं
दरवाजे पर हम तेरे लिए खड़े हैं
तुम तो आओगे हर हाल में घर
सपने एक नहीं मैंने कितने गढ़े हैं।

Vidyashankar vidyarthi

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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