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संस्कार विहीन औलाद
( Sanskar vihin aulaad )
रेखा ने आज जैसे ही पेपर उठाया फिर उस घटना को पढ़ा l पढ़कर सोचने लगी उस मासूम का क्या दोष थाl क्या बेटियां शिक्षा भी ग्रहण ना करें l
क्या हो गया है हमारे समाज को और रेखा चुपचाप सोचने बैठ गई पता ही नहीं चला l कब शाम हो गई अब तो यह घटनाएं आम होती चली जा रही हैl पहले बड़े शहरों में होती थी l
अब छोटे-छोटे गांव की ओर बढ़ती चली आ रही है l गुना में एडमिट लड़की की हालत को सोचते हुए लगा उस मासूम बेटी का तो बस इतना दोष था कि वह पढ़ने आई थी l मगर उन छह व्यक्तियों का क्या जिन्होंने एक बार भी ना सोचा लड़की भी तो किसी की बहन हैl
किसी की बेटी है l भविष्य में किसी की बनने वाली पत्नी है l कैसे संस्कार विहीन यह बालक है l इन्हें बालक कहना उचित न होगा यह तो वह है जो समाज को दीमक की तरह खा रहे हैं l
इन्हें तो पूरे गांव के बीच में खड़ा करके जलील किया जाना चाहिए न्याय प्रक्रिया,त्वरित होनी चाहिए यह किस तरह की नस्ल है l
जो संस्कार विहीन हैl या फिर सजा के प्रावधानों में परिवर्तन होना चाहिए जब तक है ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को झकझोरा नहीं जाएगा जुर्माने जैसे दंड और कुछ समय की जेल से इनमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आने वाला l
नहीं तो भरे चौराहे पर दिन भर बैठाना चाहिए और इनकी पीठ पर इनका जुर्म लिखा होना चाहिए आने जाने वाला हर व्यक्ति इन्हें हिकारत की नजरों से देखें तब शायद इस तरह के जुर्म कम हो जाएंगे l
जुर्म करने वाला एक बार भी नहीं सोचता कि उसकी मां पर क्या गुजरती होगी क्या कहीं उसकी मां उसे संस्कार देने में पीछे रह गई , इन पाशविक प्रवृत्ति से ग्रस्त विकृत व्यक्तियों को मदर इंडिया की तरह मां को ही दंड दे देना चाहिए l