झेल का खेल | Kavita Jhel ka Khel
झेल का खेल
( Jhel ka Khel )
मैं झेल रहा हूं
तुम भी झेलो!
झेल का खेल,
उन्नति की सीढ़ी है!
कितने उच्च विचारों की
देखो आज की पीढ़ी है!
झेलने में ही
खेलने का मज़ा है!
झेलना भी खेलने की
प्यारी से प्यारी अदा है!
झेलने से मान सम्मान बढ़ता है
जो ना झेले उसका
हर काम अड़ता है!
बालिंग -बैटिंग लाख हो
शान न बन पाए
आज का झेलू कल
कप्तान बन जाए!
इसलिए ——-
आओ बेटा! आओ!
झेलने की प्रैक्टिस करें
विश्व के इस महान खेल
को खेलने की प्रैक्टिस करें!
झेल का खेल से
बहुत बड़ा मेल है!
इस युग में जो न झेले
समझो वह,घेल, है!
जीवन के हर क्षेत्र में
नाकारा, निकम्मा,
और फेल है!
जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर
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