![Lekhak Lekhak](https://thesahitya.com/wp-content/uploads/2024/02/Lekhak-696x464.jpg)
लेखक
( Lekhak )
सत्य का समर्थन और गलत का विरोध ही
साहित्य का मूल उद्देश्य है
कहीं यह पुष्प सा कोमल
कहीं पाषाण से भी सख्त है
कहीं नमन है वंदन है
कहीं दग्ध लहू तो कहीं चंदन है
मन के हर भावों का स्वरूप है साहित्य
हर परिस्थितियों के अनुरूप है साहित्य
साहित्यकार शिल्पकार है समाज का
भविष्य अतीत और आज का
अछूता नहीं काल की गति से
शरणागत नहीं अपनी मत से
साहित्यकार ही आईना है समाज का
जो सभी को रखना चाहे प्रसन्न हो सकता है शब्द लोलुप
किंतु साहित्य से अलग
सबको खुश रखना नहीं उसका कर्म
दूर दृष्टि ही केवल उसका धर्म
समझौता जो करें वह लेखक नहीं
मिटाता चले बैर भाव सभी के हृदय का
प्रयास हो समस्त के विलय का
किंतु हो विरोधी भी
है लेखक वही
सत्य की सहभागिता ही प्रमाण है
साहित्यकार ही जन-जन का प्राण है
( मुंबई )