आपन तेज सम्हारो आपै

आपन तेज सम्हारो आपै

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कापै अर्थात जो अपनी शक्ति को संभाल लेता है उसकी शक्ति के प्रताप से तीनों लोकों में लोग कांपने लगते हैं।

वर्तमान समय में बढ़ते वैचारिक प्रदूषण के कारण छोटे-छोटे बच्चों में भी बुढ़ापे के लक्षण दिखने लगे हैं। आंखें धंसी हुई, चेहरों में झुर्रियां ,बालों में सफेदी, कमर आगे झुकी हुई ऐसे बच्चों को हम कैसे युवा कह सकते हैं?

पिछले दो-तीन दशकों में हुए इलेक्ट्रॉनिक क्रांति ने युवाओं को कमजोर निस्तेज बनाकर रख दिया हैथे पूर्व काल में जो बुढ़ापे के लक्षण 60- 70 वर्ष के उम्र में दिखाई देते थे वही लक्षण आज 15 से 20 साल के बच्चों में भी दिखने लगे हैं।
कभी-कभी यह समझ में नहीं आता है कि हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं या विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।

कुछ दशकों पूर्व जो बच्चों की युवानी 16 17 साल की उम्र में आती थी। वह आज 10- 11 साल की उम्र में आने लगी है। जिसके दुष्प्रभाव के कारण जो बच्चा चार-पांच साल पहले जवान होगा वह 30 – 40 साल पहले बूढ़ा भी हो जाएगा। बच्चों में जितनी जवानी देर से आएगी है बुढ़ापा भी उतना देर से आता है।

ऐसे में आवश्यकता है कि बच्चों को अपनी शक्ति को कैसे संभाले? इस पर वे विचार करें। जिस शक्ति का लोहा संपूर्ण विश्व मानता था वह आज निस्तेज बनता जा रहा है।

आधुनिक सभ्यता ने व्यक्ति को कमजोर और निस्तेज बनाकर रख दिया है। बढ़ते फास्ट फूड के प्रचलन के कारण बच्चे बचपन से ही विभिन्न बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

यदि हम अभी नहीं संभले तो हो सकता है बहुत देर ना हो जाए। कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि हनुमान जी महाराज कैसे पहाड़ को उठा सकते हैं।

उन्हें पिछले 30-40 सालों में हुए परिवर्तनों को देख कर विश्वास कर लेना चाहिए के हनुमान जी महाराज में इतनी शक्ति थी। जब भारतीयों में सुविधा का अभाव था लोग 50 किलो की बोरी उठाकर एक-दो किलोमीटर तक आराम से लेकर चले जाते थे।

आज किसी बच्चे को ५० किलो उठा कर चलने को कहा जाए तो वह उठ बैठ भी नहीं पाएगा। यह कैसा विकास हमारा हो रहा है? जो विकास हमारे आने वाली पीढ़ी को बर्बादी के मार्ग पर ले जाए वह विकास नहीं महाविनाश है।

कहते हैं के मुख से किया गया भोजन तो 24 घंटे में पच जाता है लेकिन आंखो एवं कानों से किया गया भोजन सात जन्म भी बेकार कर देता है। जो बच्चे आज आंखों से रात्रि रात्रि भर जागकर गंदी चीजों का जहर पी रहे हैं उसके दुष्प्रभाव से कैसे बच सकते हैं?

भारतीय संस्कृति में चार आश्रमों में प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य अपना तेज अपनी शक्ति संभालने के लिए की गई थी जिसकी उम्र 25 वर्ष है। यदि व्यक्ति अपने जीवन के प्रारंभिक 25 वर्षों तक अपनी शक्ति को संग्रहित कर लेता है तो आगे उसका गृहस्थ जीवन एवं वानप्रस्थ सन्यास जीते हुए प्रेम से 100 वर्ष गुजार देता था।

वर्तमान समय में ब्रह्मचर्य एक मजाक बनकर के रह गया है। जिस शक्ति को बढ़ाने की उम्र 25 वर्ष थे । उस शक्ति को बच्चे अब 10- 12 साल की उम्र में ही गवाने लगे हैं ऐसी स्थिति में ऐसे बच्चे 50 साल भी स्वस्थ जीवन नहीं जी सकते।

बच्चों का बचपन यदि कमजोर होगा तो उसको जीवन भर कमजोरी हताशा में ही जिंदगी गुजारना पड़ेगा। यही कारण है कि पहले कभी जब रोगी व्यक्ति ढूंढना मुश्किल था वही आज पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति ढूंढना मुश्किल हो गया है।

पिछले चार पांच दशकों में इतना बड़ा परिवर्तन हो सकता है कि व्यक्ति की औसत आयु 20 30 साल कम हो जाए तो हमें यह विश्वास कर लेना चाहिए कि हनुमान जी महाराज जैसे महान पुरुष दीर्घायु ही नहीं बल्कि चिरंजीव होते थे। उनमें इतनी शक्ति थी कि कोई भी कार्य असंभव नहीं था।

यदि हमें संसार को जीतना है तो पहले स्वयं को जीतना पड़ेगा। अपनी शक्ति को संरक्षित करना पड़ेगा। तभी हम काल को भी परास्त कर सकते हैं । जिस प्रकार से हनुमान जी महाराज ने परास्त किया था।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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