भगवान महावीर केवलज्ञान कल्याणक दिवस पर भगवान महावीर के चरणों में मेरा भावों से शत – शत वन्दन । केवलज्ञान कल्याणक दिवस का नाम आते ही धर्म की भावना से ओत – प्रोत व्यक्ति के भीतर में भावों की स्फुरणा पैदा होती हैं क्योंकि केवलज्ञान प्राप्त हो गया तो सभी तरह का ज्ञान हो गया और साथ में यह भी वह ( केवलज्ञान ) जीव को निश्चिंतता प्रदान करता है कि यह इसका जन्म – मरण का अन्तिम भव है और इसके आगे मोक्ष तैयार हैं जहाँ से आगे आत्मा का जन्म – मरण कभी भी नहीं होता है ।

इस तरह से केवलज्ञान को हम सम्पूर्ण ज्ञान कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि केवल ज्ञान हो गया तो इसके आगे कोई सा भी ज्ञान ग्रहण करना शेष नहीं होता हैं।

आज के दिन भगवान महावीर ने सम्पूर्ण ज्ञान अर्थात केवलज्ञान को प्राप्त किया था । भगवान महावीर वर्धमान , ज्ञातपुत्र, विदेह, वैशालिक, सन्मति, अतिवीर, काश्यप एवं देवार्य आदि नाम से भी प्रचलित हुए।

मोह को जीतने से वे जिन बने। भगवान महावीर ने अपनी असीम साधना और अभूतपूर्व त्याग तपोबलमय पुरूषार्थ आदि से परमात्म पद प्राप्त किया इसलिए भगवान कहलाये।

अंहिसा, अनेकान्त, अपरिग्रह,स्यादवाद व सर्वजीव समभाव आदि जैसे महान सिद्धान्तों के प्रतिपादन से सम्पूर्ण प्राणी जगत का भला करने के कारण धर्मतीर्थ के कर्ता अर्थात तीर्थंकर कहलाये। अर्हत , निर्गन्थ अथवा जैन परम्परा के तेइस तीर्थकरों के परिषह एक तरफ तो दुसरी तरफ चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर के कष्ट थे।

उनकी साधना मे भंयकर उपसर्ग और मारणान्तक कष्ट आये। भीषणपरीषहों को सहते – सहते भगवान महावीर ध्यान , मौन और तपस्या आदि से आत्मा को भावित करते रहे और आज बैशाखशुक्ला दशमी के दिन आत्मविकास की तेरहवेी भुमिका ( तेरहवाँ गुणस्थान ) में पहुँचे ।

वहाँ पर सघन कर्म के बन्धन पूर्णत: टूट गये।तेरहवर्ष और सात महिने का साधनाकाल भगवान महावीर का समाप्त हुआ और सिदि्धकाल की मर्यादा में महावीर अनन्तज्ञानी ,अनन्तदर्शनी, अनन्त आनन्दमयी और अनन्त वीर्यवान आदि केवली बन गये ।

वे दार्शनिक नहीं बल्कि दृष्टा बने और उनकी सर्वव्यापि अनुभुति के दर्पण में दर्शन और धर्म का विराटस्वरूप प्रकट हुआ।सर्वज्ञ भगवान महावीर का जीवन आलोकपुंज बना जिसके प्रकाश में चौदह हजार साधु और छत्तीस हजार साध्वियां-एक लाख उनसठ हजार श्रावक और तीन लाख अठारह हजार श्राविकाओं समेत करोडों व्यक्तियों ने तत्वज्ञान प्राप्त कर जीवन सफल बनाया।

आज भी भगवान महावीर के सिद्धान्त आउटडेट नहीं बल्कि हर युग में अपडेट टू डेट है। उन्होने बताया कि धर्म व्यक्तिगत तत्व है जो पवित्र ह्रदय में ही ठहरता है।

सामुदायिकता तो उसके विकास के लिए होती है।पशुबली का विरोध करते हुए उन्होने कहा जिस प्रकार खुन का सना वस्त्र खुन से साफ नहीं हो सकता वैसे हीं हिंसा से धर्म नहीं हो सकता हैं ।

अंहिसा सच्चा धर्म हैं।संयम का कोई विकल्प नही है।नारी समानता के प्रबल पक्षधर भगवान महावीर ने दासप्रथा को कंलक बताकर इसकी जडे हिला दी।

आचारव्यवहार में अंहिसा, विचारों में अनेकान्त, वाणी में स्यादवाद और समाज में अपरिग्रह आदि के संदेशो के साथ मनुष्यजाति को तीर्थकर महावीर ने जीवन जीने की कला सिखाई।

वर्तमान परिपेक्ष्य में लक्ष्य चाहे सुखशान्ति का हो ,आत्मशुद्धि का हो , आरोग्यता का हो या कोरोना महमारी से मुक्ति आदि का कोई भी हो उनकी कालजयी शिक्षायें अमृत का काम करती है।

कुल मिलाकर भगवान महावीर केवलज्ञान कल्याणक दिवस संयम का संकल्प जगाती है। भगवान महावीर केवलज्ञान कल्याणक दिवस पर आत्मा का विकास ही हमारे लिये काम्य है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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