स्टार बनने की चाह में

स्टार बनने की चाह में मैडल के लिए तरसते हम

आबादी के लिहाज़ से छोटे से मुल्क ऑस्ट्रेलिया की अकेली खिलाड़ी एम्मा मैकेन ने टोक्यो ओलंपिक-2021 में 4 गोल्ड व 3 ब्रॉन्ज़ मैडल जीते।

ऑस्ट्रेलिया में उसे कोई पूछने तक नहीं आया,क्योंकि वहां के लोगों या सरकार के लिए या राज नेताओं के लिए यह उपलब्धि कोई खास मायने नहीं रखती। और दूसरी तरफ हम 140 करोड़ भारतीय सिर्फ एक मैडल पर ही पागल हुए जा रहे हैं।

एक-एक मेडल के लिए तरसते इस देश में जब हमारे स्टार खिलाड़ी सब कुछ मिलने के बाद राजनीति का स्वाद भी लेना चाहते हैं तो मन खट्टा हो ही जाता है।

देश की हालात देखिये ओलिंपिक में मेडल के लिए तरसते है और कोई एक मेडल जीत जाए तो राजनीतिक लाभ लेने के लिए पैसो की बारीश कर देते है लेकिन जो खिलाडी अभ्यास कर रहे होते है उनके लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराते।

यह भी सत्य है कि दोनों चाहे खिलाड़ी हो या जवान देश का गौरव बढ़ा रहे हैं। फिर उनके साथ ऐसा अन्याय क्यों..? सिस्टम को सोचने की ज़रूरत है। खिलाडियों को खिलाड़ी रहने दें। युद्ध के नायक न बनाए।

ओलिंपिक 2024 में सभी देशों को टक्कर देता इकलौता विश्वविजेता देश जापान आज हम सभी के लिए ज्योतिपुंज है। 14 साल का जापानी युवा गोल्ड मेडल ला रहा है और हम 140 करोड़ का देश एक मैडल पर राजनीति श्रेय लेने की होड़ में वाह -वाही कर रहे हैं।

हर खिलाड़ी की व्यक्तिगत जीत देश के लिए न्यौछावर है लेकिन हम कहाँ हैं ये जानना ज़रूरी है मैडल लिस्ट में। जहां कॉलेज और स्कूल स्टूडेंट्स ओलंपिक मैडल ले आते हैं उनको बचपन से फोकस, ज़िम्मेवारी और निपुणता कैसे लानी है सिखाया जाता है।

आज तक के हर ओलंपिक की यह तस्वीर आप खुद देखिए अब आगे क्या कहूं? एक-एक मेडल के लिए तरसते इस देश में जब हमारे स्टार खिलाड़ी सब कुछ मिलने के बाद राजनीति का स्वाद भी लेना चाहते हैं तो मन खट्टा हो ही जाता है।

देश की हालात देखिये ओलिंपिक में मेडल के लिए तरसते है और कोई एक मेडल जीत जाए तो राजनीतिक लाभ लेने के लिए पैसो की बारीश कर देते है लेकिन जो खिलाडी अभ्यास कर रहे होते है उनके लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराते। भारत जैसा देश शायद ही कोई दूसरा होगा। इन्ही कारण से आज देश के सफल लोग देश छोड़े जा रहे है।

अपने देश मे योग्यता तो जन्म के साथ जाति विशेष मे पैदा होने से ही आ जाती है, 9वीं फेल भी जाति आधार पर योग्यता के सर्टिफिकेट बांटते मिल जायेंगे लेकिन 140 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाला देश 1947 मे देश की आजादी के बाद भी ओलम्पिक जैसे विश्व स्तरीय खेलो मे एक एक गोल्ड मैडल के लिए तरसते आए है ।

जबकि वहाँ कोई रिजर्वेशन भी नहीं है कि योग्यता के ठेकेदार लोगों को रोक रखा हो। हे महानुभावो, जिस फितुर को आप योग्यता मान रहे हो, असल मे तो वो देश की सामूहिक बदनामी है और हजारो अयोग्यताओ की जड़ है। जातियों मे महानता खोजना योग्य नहीं अयोग्य लोगो की पहचान है।

ये जो ग्रेट #जाति बनने की बीमारी लोगों मे लगी है, ये कोढ़ से भी ज्यादा घातक है। कोढ़ तो शरीर पर हमला करता है, जातियो मे महानता तो सीधा दिमाग मे कोढ़ लगाता है।

आदमी कब नफरत का आदी हो जाता है, कब अपराधी होने मे गर्व तलाशने लगता है – पता भी नही लगता। खिलाड़ी एक खिलाड़ी होता है और देश का प्रतिनिधित्व करता है फिर क्यों एक विशेष जाति के नारे हावी हो जाते है। यहीं हम हार जाते है।

पता नहीं हम कब सुधरेंगे ? आबादी के लिहाज़ से छोटे से मुल्क ऑस्ट्रेलिया की अकेली खिलाड़ी एम्मा मैकेन ने टोक्यो ओलंपिक-2021 में 4 गोल्ड व 3 ब्रॉन्ज़ मैडल जीते। ऑस्ट्रेलिया में उसे कोई पूछने तक नहीं आया,क्योंकि वहां के लोगों या सरकार के लिए या राज नेताओं के लिए यह उपलब्धि कोई खास मायने नहीं रखती।

और दूसरी तरफ हम 140 करोड़ भारतीय सिर्फ एक मैडल पर ही पागल हुए जा रहे हैं । हमारे प्राइम मिनिस्टर, चीफ मिनिस्टर सहित तमाम छुटभैये नेता रोटियां सेंक रहे हैं । इस एक मैडल की आड़ लेकर जात धर्म के ठेकेदार ज़हरीले नाग बेख़ौफ़ फुंफकारते घूम रहे हैं।

ऐसा यूँ है कि इस देश में चढ़ते सूरज को नमस्कार किया जाता है। गरिमा, गौरव और प्रतिष्ठा के बिना ही यहाँ जीवन चलता रहता है। आज भी यहाँ चीन का सामान खरीदा जाता है।

जो फिल्मी कलाकार तुर्की जाकर शूटिंग करते हैं उनका बहिष्कार तक करने की किसी की हिम्मत तक नहीं होती है। यहाँ विदेशी लुटेरों को पूजा जाता है। विदेशी आक्रांताओं के अधीन रहने से हमें तिल-तिल कर मरने की आदत पड़ गई है।

इसीलिये सत्ता के विरुद्ध आवाज उठाना नहीं आता है। जो भी हो रहा है वो सब भगवान की मर्जी मान कर जीने की कला सीख ली है। शत्रुता या मारक भाव के अभाव के कारण पता ही नहीं चलता कि कौन हितैषी है और कौन विद्वेषी।

विश्वसनीयता के नाम पर हम हमेशा देश हित से ऊपर जाति, वर्ग, धर्म, परिवार-कुटुम्ब, गाँव, प्रदेश, क्षेत्र, सम्प्रदाय, व्यवसाय और व्यक्तिगत लाभ को रखते हैं।

खिलाड़ी जीत कर आयें तो उन्हें करोडों मिलते हैं,लेकिन जो देश की रक्षा के लिए अपने परिवार की परवाह न करते हुऐ अपनी जान न्यौछावर कर दें उन्हें बस 1 मैडल..? मैं मैडल की तुलना पैसों से नहीं कर रहा हूँ, यह तो अनमोल है,
लेकिन जो देश के लिए अपने घर वालों को छोड़कर चला गया उनकी फैमली बच्चे माता पिता की ज़िम्मेदारी किसकी..? सच तो ये है कि,आज पैसों से ही सब होता है।

भावनाओं और सम्वेदनाओं से जीवन यापन नहीं किया जा सकता.. यह भी सत्य है कि दोनों चाहे खिलाड़ी हो या जवान देश का गौरव बढ़ा रहे हैं। फिर उनके साथ ऐसा अन्याय क्यों..? सिस्टम को सोचने की ज़रूरत है। खिलाडियों को खिलाड़ी रहने दें। युद्ध के नायक न बनाए।

Priyanka

प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

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