मैं हूँ दीपक एक बदनाम सा

डॉक्टर दीपक गोस्वामी की कविताएं | Dr. Deepak Goswami Poetry

कौन क्या है

कौन क्या है कैसा है
उस पर कितना पैसा है
कितना रसूख और रंगबाज जैसा है
कितनों से अलहदा ऐसा वैसा है
अपुन रोटी राम के लिए सब एक जैसा है
अपने टूटे खुर्दबुर्द चश्मे से
जब एकटक देखता हूँ दूर तलक
बेनकाब दुनिया के इस हमाम में
हर इंसान नागा और हमपेशा हैं

प्रेम

प्रेम गली अति साँकरी
इत दो अंतस ना समाय
दो तन मन जब एक हों
तब प्रेम प्रीत उपजाय
काजर की कोठरी है प्रेम
ह्दय नेह पोटली है प्रेम
सहज मन में उपजे है प्रेम
निर्धन का धन है प्रेम
खुद ही हो जाता है प्रेम
खुद नेह लुटाता है प्रेम
जाति धर्म से परे प्रेम
रूप रंग देखे कभी प्रेम
नाम पता ना पूछे कभी प्रेम
तन मन धन सब हार कर जीता है प्रेम
शरीर वासना से परे प्रेम
नित नित बढ़ता है स्वयं प्रेम
ईश्वर स्वरूप है अमर प्रेम

सत्य वद

सत्य वद
धर्म चर
जीत दिल
कर्म कर
रोज मिट
सुकर्म पर
दुख हर
उपक्रम कर
हार मत
हर कर्म कर
जिंदगी एक
होम कर
प्यार बो
अमन कर
रो मत
मुट्ठियाँ गर्म कर
आँसू पोंछ
दिल मर्म कर
तू हार मत
सिर्फ कर्म कर

पहचानना है ये कौन ?

रहस्यमयी शत भुजी
दिव्यांका
रूपांका
झाड़ू वाली
पोछे वाली
चाय वाली
नाश्ते वाली
रोटी वाली
बर्तन वाली
आया
ट्यूटर
नर्स
बैंकर
ऑलवेज हेल्पर
सर्विसेज प्रोवाइडर
लाइफ स्पीड ब्रेकअप डिवाडर
वामांगी
बहु
पत्नी
मां
विन पैसा नोँकर
जिसने नही सीखा कभी ना कर
कर कर और करके मर
काकी, भाभी, चाची, दीदी
मौसी,फूफी, नानी ,दादी
टाइम मशीन टाइम पास
घरेलू सर्कस का जोकर
ताश के पत्ते का पोकर
विज्ञापन का पोस्टर
रील के हिट टोस्टर
लाफ्टर क्वीन
बच्चे बनाने की मशीन
ब्यूटी मीन
सदा चिंता महीन
जीती जगाती सोती रोती
अपने अपनो के लिए
अपने नही दूसरों के सपनों के लिए
नित मौन गम का प्याला पिये
बाजार की शान
मुस्कान की दुकान
लिए जिस्म आलीशान
पहचान मादा परेशान
थोड़ा खुशी थोड़ा दुखी
थोड़ी सी अफलूतान
थोड़ी सी महान
सदा परेशान
आज क्या बनाऊ
ऐसा क्या खिलाऊ
जिससे इनका वेट ना बढ़े
शरीर पर बुढापा ना चढ़े
हेल्दी टेस्टी और फटाफट
बच्चे भी खा जाए चटाचट
पेट में सेट भी हो जाये सफ़ाचट
और जाने क्या क्या।
हजारों हजार आंखों की वासना को झेल
अनचाहे नानसेंस टच को झेल
विन मर्जी जोड़ा बेमेल
फिर भी जीवन रेलम पेल
कंपनी स्कूल फैक्टरी ऑफिस
या अपने आसपास
कामकाजी वाकिंग मशीन को गौर से देखिए
महिला सजीव रोबोट
वर्किंग वूमेन ai सुपर शॉट
सुबह चलते चलते नाश्ता टिफिन बना
9 am to 9 pm काम कर निकल
बाजार से सामान चुन चुन भर झोली सकल
समय की चिंता प्रति पल
सवारती सजाती निहारती ह्दयतल
क्योंकि सब को खिलाना और नेह से सुलाना है
रात को देह मथ है सेज को सजाना
बिन मन खिसयानी ही सही पर है मुस्कराना
फिर सुबह है जल्दी भोर तड़के
थोड़ा सा योगा फ़ॉर फिटनेस करके
निकलना है नए कर्म पथ
कस लिए है जो अश्रु रथ
पसीने से हो लथपथ
होम होना है तन मन धन सत्य शपथ
यही है होना सदा मेरी किस्मत
क्योंकि पर्दानशीं है सदा अस्मत

कुछ बात तो कर

सुन खुद से खुद की एक मुलाकात तो कर
अपने अस्तित्व मन से कुछ बात तो कर

समझ जिंदगी इतनी परीक्षा रोज क्यों लेती है
दो पल ठहर खुद से खुद की मुलाकात तो कर

अपनी कमजोरियों और गुणों को जान
अपनी ताकत समझ सम्भावना को छान

शांत चित्त हो मन भीतर बैठे ईश्वर को पहचान
सुन सभी की पर सदा अपने मन की मान

तनावमुक्त रह कर अपनी खुशियों का गान
लक्ष्य सिद्ध कर्म पथ डट लगा दे पूरी जान

परिवार समाज से जुड़ दे सभी को सम्मान
लुटा खुशियों की पोटली छोड़ सभी अभिमान

एक बार सपनों से मिल चढ़ लक्ष्य स्वप्न यान
हार से ना डर सुनिश्चित जीतेगा रे तू पहलवान

गिर फिर उठ चल तेज लक्ष्य पथिक महान
मिट्टी से जुड़ नवाचारी कर कुछ नया सन्धान

अनुसंधान से निश्चित बनेगी तेरी नई पहचान
मुंगेरी लाल के सपनों से जाग उठ जीत जहान

चल एक बार खुद से मुलाकात तो कर
थोड़ा मुस्कुरा थोड़ा गुनगुना अपनों से बात तो कर

रे कर्मयोद्धा विषमताओं से दो दो हाथ तो कर
किस्मत जगा डर से मुक्का लात तो कर
जारी…

श्राद्ध

श्रद्धा से
विनम्रता से
भाव से
विश्वास से
रिश्ते खास से
अपनों को
अपने सुरक्षित सपनों को
अपने कुल मान को
समाज सम्मान को
पितरों को
भूले बिसरे मित्रों को
सन्यासी करे खुद का
अपनी जड़ चेतन सुध बुध का
नवाचार को
सद विचार को
वैदिक ब्यवहार को
सुरक्षित घर संसार को
डर से
संस्कृति के घर से
काल्पनिक पर से
क्योंकि श्राद्ध
सदैव समपर्ण है
तन मन धन अर्पण है
नेह का तर्पण है
कृतज्ञता का दर्पण है
अंनत अंनत तक हदयतल से श्रद्धा नेह भावांजलि समपर्ण है

पितृ पक्ष

सोलह दिन है श्रद्धा दिवस
नमन वन्दन हिय नेह कलश
देह प्रदाता ज्ञान गुण सरस
सत्यपथिक कुल भूषण परस
गृह लोक पधारें पितृ देव
पूजन वन्दन है पितृ देव
ह्दय सिंघासन अर्पित पितृ देव
नेह भोजन अर्पित है पितृ देव
शत शत वन्दन नित पितृ देव
नेह कृपा बुहारों पितृ देव
सब काज समारों पितृ देव
संकट सब टारो पितृ देव
काक कूकर गौमातः संग आए पितृ देव
श्रद्धा से भोग लगाओ जय पितृ देव
मिल सभी आरती उतारो जय पितृ देव
होय पूरन सब काजा कृपा पितृ देव
सब कष्ट निवारण कृपा पितृ देव
सब देव दुलारे जय पितृ देव
संकट दुख हारे जय पितृ देव
बढ़ी कुल फुलवाड़ी जय पितृ देव
चहुँ कीर्ति संपदा बाढ़ी जय पितृ देव
होय सब पूरन काजा जय पित्त देव
सब मिल नवाओ माथा जय पितृ देव
पितृ देव की कृपा सरस
नित अंतर्मन में छाय
पितृ देव सत्यप्रेम दर्श
पाय मन अंतर हर्षाय

डाक्टर दीपक गोस्वामी मथुरा
उत्तरप्रदेश , भारत

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