आप की परछाईं | Aap ki Parchhai
आप की परछाईं
( Aap ki Parchhai )
आप की परछाईं जब खुद आपसे डर जायेगी
है यक़ीं के यह भी तोहमत मेरे ही सर जायेगी
मैं चिराग़ -ए- ज़िन्दगी हूँ मत छुओ मेरा बदन
मैं अगरचे बुझ गया तो रोशनी मर जायेगी
मेरी तस्वीर – ए- वफ़ा मत टाँगिये दीवार पर
यह किसी की आँख में पैदा नमी कर जायेगी
उसकी मासूमी से अंदाज़ा लगा पाया नहीं
ग़मज़दा इतनी वो मेरी ज़िन्दगी कर जायेगी
तेरी ख़ामोशी ने तुझको बेवफ़ा ठहरा दिया
अब सफ़ाई अपनी देने क्या तू दर – दर जायेगी
उस अदालत से बड़ी कोई अदालत है नहीं
भूल मत नेकी बदी भी साथ महशर जायेगी
इल्मो फ़न के मैंने साग़र जो लगायें हैं शजर
और कुछ ख़ुशबू सुख़न की बज़्म में भर जायेगी
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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