प्रगति दत्त की कविताएं | Pragati Dutta Hindi Poetry
आस का दामन
आस का दामन , मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
मुश्किल
सामने मुश्किल, खड़ी है ।
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
आओ इसका ,हल तो सोचें ।
आंसूओं को, तुरन्त पौंछें।
दूर होगी ,हर कठिनाई ।
दिखानी होगी , बस चतुराई ।
मुश्किल का ,हम करें सामना ।
इससे डरकर , नहीं भागना ।
मिलेगा इसका समाधान ।
हो जायेगा ,सब आसान ।
सपने एक दिन ,होंगे पूरे ।
रह ना ,पाएंगे ये अधूरे ।
बदलेगी एक, दिन ये दुनिया ।
इसमें होंगी, केवल खुशियां ।
प्रभु का ,करें गुणगान ।
हर मुश्किल, होगी आसान ।
सामने ,मुश्किल खड़ी है
पर ज़िन्दगी ,इससे बड़ी है ।
हमेशा तो नहीं होगा
हमेशा तो , नहीं होगा ।
जो कल था, वो आज नहीं होगा ।
जो आज है, वो कल नहीं होगा ।
जहां है आज दुख , कल वहीं सुख होगा ।
हुआ है यदि वियोग, तो मिलन भी होगा ।
आज है यदि तनाव , तो कल चैन होगा ।
छाई है काली रात, तो सवेरा भी होगा ।
हुआ है सूर्य अस्त ,तो फिर उदय भी होगा ।
रख स्वयं पर विश्वास , तू सफल ही होगा।
हारा है तू आज, तो कल विजयी भी होगा।
प्रभु ने रचा संसार , तो कुछ सोचकर ही होगा।
समय है अभी विपरीत, हमेशा तो नहीं होगा।
पुराना ज़माना
पुराने जमाने की ,
अलग थी बात ।
जब मनोरंजन था ,
रेडियो का साथ ।
पिताजी सुना करते ,
रेङियो पर समाचार ।
माताजी सुनती थीं ,
इस पर संगीत ।
रेडियो होता था ,
हम सब का मीत ।
जब हुआ करती थी ,
खतों की बहार ।
फोन का नहीं,
हुआ था आविष्कार ।
खतों में जब हम,
उड़ेलते थे प्यार ही प्यार ।
सच ! वो भी क्या ,
दिन थे यार ।
एकांत
यह एकांत जो हमें ,
हमसे मिलाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
जीना सिखाता है ।
यह एकांत जो हमें ,
शक्तिशाली बनाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
गुणों को बाहर लाता है ।
यह एकांत जो हमारे ,
ह्रदय में चैन लाता है ।
और धीरे धीरे यह ,
हमारे जीवन का ,
महत्वपूर्ण भाग बन जाता है ।
होता यह नितांत अपना ,
दिखाता प्रतिदिन नया सपना ।
सारी चिंता यह मिटाता ,
ह्रदय में भाव सुंदर जगाता ।
हां यह एकांत —-
अपना निजी एकांत ।
शुक्रिया मेरे ईश्वर
शुक्रिया मेरे ईश्वर,
की तूने , मुझपर महर ।
साथ है , तू हर पहर ।
दिखाई ,सच की डगर ।
कर दिया , आसाँ सफ़र ।
दुखों को , लिया तूने हर ।
भर दिया , सुख से फ़िर घर ।
झुका तेरे , सजदे में सर ।
शुक्रिया , मेरे ईश्वर ।
ध्यान से
कहीं जीवन ,बिखर ना जाए ।
कहीं सब , बिगड़ ना जाए ।
भरोसा , टूट ना जाए ।
साथ कहीं, छूट ना जाए ।
ह्रदय कहीं ,टूट ना जाए ।
प्रेम कहीं , खो ना जाए ।
हंसी कहीं , खो ना जाए ।
चैन कहीं , चला ना जाए ।
वक्त कहीं , गुज़र ना जाए ।
लौटकर , फ़िर ना आए ।
ज़िन्दगी , बीत ना जाए ।
ये है, बड़ी छोटी भाई ।
कर्म कर, ध्यान से भाई ।
वक्त
वक्त अच्छा ,बुरा नहीं होता ।
हम ख़ुद ही, इसे बनाते हैं ।
हम ही करते हैं, चुनाव वक्त का ।
हम ही करते इसे , अच्छा और बुरा ।
कर्म यदि, हमारे अच्छे हैं ।
वक्त भी ,हो जाता है अच्छा ।
कर्म यदि, भूल से बिगड़े अपने ।
कुछ भी होता नहीं , फिर वक्त से बुरा ।
वक्त के साथ, सब बदल जाता ।
ये होता नहीं, किसी का सगा ।
चाहते सब कि , पकड़ लें इसको ।
पर ये पकड़ में ,कभी भी आ ना सका ।
महत्व जिसने भी, वक्त का समझा ।
हां उसने ही , सफलता को छूआ ।
वक्त जो एक बार, गुज़र है गया ।
लौटकर फिर वो, कभी ना मिला ।
आओ क़ीमत , वक्त की पहचानें ।
हर पल में , भर दें मुस्कानें ।
मुस्कान की ज़रूरत
हर हाल में, मुस्कुराया करें ।
दुखों को, भूल जाया करें।
व्यर्थ के, तनावों में ।
जीवन को ना बिताया करें ।
जीवन मिलता है, बस एक बार ।
इसको ऐसे ना गंवाया करें ।
खुशीयों का, लें आनन्द ।
रंजों को , भूल जाया करें ।
ईश्वर से, जो मिला है ।
उस सुख को ही चलो भोगें ।
अपनी इच्छाओं को,
अनन्त ना बनाया करें ।
ईश्वर का भी ,आभार
जिसने रचा संसार ।
भूल से ,भी उन पर ।
हम क्रोध ना दिखाया करें ।
हर हाल में ,मुसकुराया करें ।
सब अंधकार मिट जाएगा
सब अंधकार , मिट जाएगा ।
यदि तू मिटाना चाहेगा ।
संसार मुस्कुराएगा ,
यदि तू मुस्कुराएगा ।
खुशी ही खुशी पायेगा ,
यदि तू पाना चाहेगा ।
हर मोड़ बदल जाएगा ,
यदि तू बदलना चाहेगा ।
अच्छा ही सब हो जाएगा ,
गर तू अच्छा हो जाएगा ।
बस प्रेम ही तू पाएगा ,
यदि प्रेम तू लुटाएगा ।
जीवन ये चमक जाएगा ,
यदि तू इसे चमकाएगा ।
तू साथ सबका पाएगा ,
यदि साथ तू निभायेगा ।
सब अंधकार मिट जाएगा ,
यदि तू मिटाना चाहेगा ।
ये कहानी नहीं कोई
ये कहानी , नहीं कोई ।
ये ज़िन्दगी ,एक हकीकत है ।
इसको केवल, पढ़ना ही नहीं ।
ना ही बस, इसको है लिखना ।
जी भर के , इसको है जीना ।
खुल कर के ,इसको है जीना ।
एक बार अगर, ये गुज़र गयी ।
तो लौट के ,फिर ना आयेगी ।
तुम चाहोगे ,जीना फिर से ।
पर ये ना, तुम्हें मिल पायेगी ।
इसलिए सब, शिकवे दूर करो।
बेकार के ,झगड़ों में ना पड़ो ।
अब बस तुम ,खुशियां ही बांटो ।
बुराई ना सबमें छांटो ।
नफ़रत का , ना व्यापार रहे ।
हर दिल में ,केवल प्यार रहे ।
आस का दामन
आस का दामन, मत छोड़ो ।
वक्त की तरह, तुम भी दौड़ो ।
जो टूट गया, फिर से जोड़ो ।
यदि आस ,तुम्हारी टूट गई ।
समझो कि, ज़िन्दगी रूठ गई ।
ख़ुद पर तुम, पूरी आस रखो ।
सब पाओगे , विश्वास रखो ।
होगा पूरा, हर एक सपना ।
बस अपने ,पर यकीं रखना ।
पार करनी , होंगी खाईयां ।
फिर ,छू लोगे ऊंचाईयां ।
मुश्किल में, ज़रा ना घबराना ।
बस बिना ,रुके बढ़ते जाना ।
मन में ना ,रखना कोई शंका ।
बज जाएगा, एक दिन डंका ।
निश्चय ही, ऐसा पाओगे ।
दुनिया में ,नाम कमांओगे ।
आस का ,दामन मत छोड़ो ।
जो पाना है ,पाकर छोड़ो ।
ओ इंसान
ओ इंसान !
हर जगह छोड़,
अपनी अच्छाई के निशान ।
और अपनी, सच्चाई के निशान ।
बस इसी में लगा , तू अपनी जान ।
पहले बन , अच्छा इंसान ।
फ़िर गुणवान, और चरित्रवान ।
लोग करें , तेरा गुणगान ।
कर तू कुछ , ऐसा मेरी जान ।
बना अलग ,अपनी पहचान ।
करें सब तुझपर, जां कुर्बान ।
तब ही तू ,कहलायेगा महान ।
याद रखेगा, तुझे जहान ।
क़ायम रख, अपना ईमान ।
त्याग ना मत ,कभी स्वाभिमान ।
बढ़ा अपने, किरदार की शान ।
समझा मेरे, प्यारे इंसान ।
शरद पूर्णिमा
आज चंद्र की, छटा निराली ।
रात ना रही अब, उसकी काली ।
चमक उठा ,सारा आकाश ।
बिखरा जो अब , पूर्ण प्रकाश ।
दूर हुई ,आकाश की कालिमा ।
लो आ गई ,शरद पूर्णिमा ।
पूर्ण हुई चंद्र की ,सोलह कलाएं ।
बहने लगीं अब, सर्द हवाएं ।
धरती आकाश का , हुआ मिलन ।
कितना अनोखा ,यह संगम !
रात्रि के पथ पर आज,
चंद्र ने कर दिया उजाला ।
इनका रिश्ता ,अटूट रिश्ता ।
प्रेम इनका , सबसे न्यारा ।
बनेगी प्रसाद में,
खीर पंचमेवा युक्त ।
इसे ग्रहण कर,
भक्त होंगे पाप मुक्त ।
आज प्रसन्न होंगी,
लक्ष्मी माता ।
पूर्ण करेंगी, भक्तों की आशा ।
प्रेम का नाता
फ़िर भी बचा, रह जाता है ।
यह कैसा, प्रेम का नाता है?
कितनी भी ,अनबन हो चाहे ।
यह पुनः ,लौट कर आता है।
जितना बचना ,चाहें इससे ।
यह उतना, बढ़ता जाता है।
हटाकर घृणा, को यह पुनः।
अपना स्थान, बनाता है ।
सबकी चालों, को सहकर भी।
यह हर क्षण , बढ़ता जाता है।
सारे द्वेषों के ऊपर यह ,
विजय सदैव ही पाता है।
यह कैसा,प्रेम का नाता है?
गुज़रा हुआ वो कल
गुज़रा हुआ ,
वो कल ।
काश ! मिल जाये ,
इसी पल ।
बचपन वाली वो ,
सुबह काश !
फ़िर जाए निकल ।
जहां ना थी ,
कोई चिन्ता ।
कि क्या होगा कल ।
जहां था चैन ,
और सुकून हर पल ।
पर आखिर कौन ,
लौटायेगा वो ,
सुखद पल ?
वो अपनों का साथ ,
वो ठहाकों भरी रात ।
क्या वापस आयेगी ,
फ़िर कल ?
बचपन के मित्रों ,
के साथ ,बिताए वो पल
क्या फ़िर ,
लौट आयेंगे कल ?
भला कौन ,वापस लायेगा ।
वो गुज़रा ,हुआ कल ?
अम्बे रानी
ये जो हैं अपनी ,अम्बे रानी ।
इनकी तो है, छटा निराली ।
कभी ये अम्बा , कभी हैं काली ।
मां हैं एक ,पर इनके रूप अनेक
नवरात्रि में ,नव रूपों में आती ।
भक्तों पर कृपा ,अपनी बरसातीं ।
जो भी मां के, दर पर आता ।
मुंह मांगा वो , फ़ल है पाता ।
अम्बे मां से जो भी,
लगाता अरदास ।
पूर्ण करती मां, उसकी हर आस।
भक्त यदि ,जीवन से हारा ।
मां दयामयी, उसे देतीं सहारा ।
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी,
कालरात्रि, महागौरी, सिद्धीदात्री ।
ये हैं ,
मातारानी के नौ रूप ।
नौ दिन तक,
इनका पूजन होता खूब ।
फ़ल भी, मां ! देतीं भरपूर ।
जो मांगोगे , मिल जायेगा ।
यदि विश्वास अटल,
मां पर हो जायेगा ।
मां अम्बा !
तेरी जय- जयकार ।
मां शक्ति !
तेरी जय-जयकार ।
बनाती सबके,
बिगड़े काम ।
मां अम्बे तुम्हें , बारम्बार प्रणाम !
लेकिन ये दिल ना माना
लेकिन ये दिल, ना माना ।
सारा सच , इसने जाना ।
फ़िर भी ये, दिल ना माना ।
जिन्होंने दिया, इसे धोखा ।
उनको ना, किया बेगाना ।
समझा उनको , भी अपना ।
खोला हर ,राज़ पुराना ।
स्वार्थी हैं , अधिकतर रिश्ते ।
यह भी ये, दिल माना ।
कितना भी, इसे सिखलाया ।
पर ना , सीखा ठुकराना ।
चाहा तो, बहुत मनवाना ।
लेकिन ये, दिल ना माना ।
जिनके थे, दोहरे चेहरे ।
उनको भी, पड़ा अपनाना ।
क्यूंकि दिल तो, फ़िर दिल था ।
ये मेरी, एक ना माना ।
श्रीमती प्रगति दत्त
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश
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