
जाने दो
( Jaane do )
हे प्रिय प्रकाश को बन्द करो,
अन्धियारे को तुम आने दो।
कोई देख ना ले हम दोनो को,
जरा चाँद को तुम छुप जाने दो।
तब तक नयनों से बात करो,
कोई हास नही परिहास करो।
मन के भावों को रोक प्रिये,
घनघोर अन्धेरा छाने दो।
तुम सा मुझमे भी आतुरता,
मनभावों मे भी चंचलता।
पर शर्म उजाले से मुझको,
जो रोक रही है माद्कता।
इस लिए प्रिये मन बाँध रखो,
निज हाथों में मत हाथ धरो।
नयनों की रोको कामुकता,
हुंकार बहक ना जाने दो।
ऐसे मत देखो प्राण प्रिये,
मन की बेचैनी बढती है।
तन अमरबेल सी सिमट रही,
सकुचाई सी तन लिपटी है।
मै रोक नही पाती खुद को,
तेरी खुशबू मदहोश करे।
जो चाहो तुम कर लो लेकिन,
दीपक को तो बुझ जाने दो।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )