Paili aali
Paili aali

पैली आली बाता अब री कट्ठे

( Paili aali bata ab re katthe )

 

पैली आली बाता अब  री  कट्ठे,
ग़म खाबो गुस्सो पीबो अब कट्ठे।
घाट अर छाछ का सबड़का कट्ठे,
गुड़ तिली रो तेल अब पचें कट्ठे।।

भाग फाट्या ही सब उठ जाता,
दादा उ सबल्ला घर का डरता।
गाँय भास रो पीवर दूध पीवता,
गुदडा में मोगर लाडू खा लेता।।

जल्दबाजी म सब न्हाता धोता,
कदी मोराद सू काम चला लेता।
कट्ठे पडी ही उण टाईम साबण,
नमक खार सू कपड़ा धौ लेता।।

स्कूला रे माय कट्ठे कुण भेजता,
घर खेता काम में हाथ बटवाता।
कट्ठे पड्या कलम पोथी पानडा,
आंगल्या पर हिसाब कर लेता।।

कच्चा मकान मुडृडा सू दड़ता,
बरसादा रे माय पाणी टपकता।
आगणों डांडा पोईटा सू लिपता,
बचेडा़ सू थापड्या बणा लेवता।।

चबुतरी पर बैठर हताया करता,
लुक्का छुपी आस पास खेलता।
छोरया लंज्या डोला गीत गाउती,
पाणी रो बेवडो बैरा सू ल्यावती।।

खेंता म हाड़तोड़ मेहनत करता,
देशी घी गचागच रोट्या खाउता।
ओपरा आदमी रो आदर करता,
छाछ लस्सी गिलास भरर पाता।।

बाता ही बाता म सगाई हो जाती,
पोतड़ा म बींद बारात चढ़ जाती।
खाबा म दाल अर लावसी बणती,
बारात तीन चार दिन तक रुकती।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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