कलाम अहमद खान

कलाम अहमद खान : ‘शून्य से सूरज की ओर‘ ले जाने वाली शख्सीयत

हिन्दी एवं मराठी साहित्य के आकाश पर सूर्य की भांति प्रकाशमान एक नाम कलाम अहमद खान। आपने हिन्दी और मराठी साहित्य को जोड़ने के लिये सेतु का कार्य किया है, आपकी मराठी पर जितनीr पकड़ है उतनी ही हिन्दी साहित्य पर।

वक्त के समंदर में युग भी डूब जाएगा
नाम कलाम अहमद का फिर भी जगमगाएगा

कहा जाता है कि दुनिया की हर भाषा और हर भाषा के साहित्य का मुख्य उद्देश्य होता है समाज और मानव कल्याण। साहित्य मन-वचन और कर्म का मेल होता है, समाज को बेहतर बनाने के लिये, मानव को मानवता का पाठ पढ़ाने के साहित्य रचा जाता है।

अमेरिकन लेखक मिली डिफेमसन के अनुसार साहित्य एक ऐसा पंखवाला घोडा है जो मानवात्मा को मनोवेग से सारे स्वप्न लोकों में विचारित करवाता है। साहित्य मानव उत्थान और समाज उत्थान का कार्य करता है। ऐसे ही सेवाभाव के धनि है कलाम अहमद खान! जिनके लिये एक शेर-

भाव सच्चे मोती का कभी कम नहीं होता
फेंक दो अंधेरे में रोशनी दिखाएगा

आपसे मेरी प्रथम भेंट आज से २७ वर्ष पहले महाराष्ट्र कामगार कल्याण मंडल के कल्याण भवन रघुजी नगर नागपुर में हुई. पहली ही भेंट में वह मेरे घनिष्ट मित्र बन गये। कामगार कल्याण भवन में मराठी कवि सम्मेलन का आयोजन था और मैं एक उर्दू कवि के रूप में उपस्थित था।

यह मेरी सृजन यात्रा का प्रथम पड़ाव था। और पहला कवि सम्मेलन भी। वहाँ का वातावरण मराठीमय था। मैने अपनी हिन्दी कविता को मराठी भाषा में रूपांतरित किया और काव्य पाठ के समय संचालक में मेरा परिचय उर्दू शायर के रूप में दिया।

मैंने एक उर्दू गजल पाठ किया और एक मराठी कविता। वहाँ उपस्थित कवियों-श्रोताओं ने मेरी गजल पर जितनी तालियां बजाई उससे अधिक तालियां मराठी कविता पाठ पर बजाई। कार्यक्रम के पश्चात मुझसे कई कवि मिले।

जितनी गजल पर बधाइयां दी उससे अधिक मराठी कविता पर बधाइयां दी। कलाम साहब भी मिले। आपने भी मेरा मनोबल बढ़ाया और कहा अरे-आप तो छुपे रुस्तम निकले। एक उर्दू शायर होते हुये भी आपने जो मराठी काव्य पाठ किया वह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है।

कविता में कुछ कमी है लिखते-लिखते सुधार आ जाएगा। आपने मेरी कविता को शब्दशिल्प मासिक में प्रकाशित भी किया। जिससे मुझे बहुत खुशी हुई। शब्दशिल्प कारण किसी मासिक में कविता प्रकाशित होने का प्रथम अवसर था।
इसके पश्चात मैं लिखता रहा।

आपने मेरी अनेक रचनाएँ प्रकाशित की और मुझे कई मराठी कवि सम्मेलनों से काव्य पाठ का अवसर भी दिया। सन २००४ में मासिक शब्दशिल्प की ओर से काव्य स्पर्धा में परीक्षक ने मेरी कविता को प्रथम पुरस्कार घोषित किया।

इससे आप बहुत खुश हुए और कहने लगे एक उर्दू शायर की मराठी कविता को लगभग १०० स्पर्धकों में से प्रथम पुरस्कार प्राप्त होना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। सन २००५ में जब मुझे महाराष्ट्र शासन का गुणवंत कामगार पुरस्कार राज्य के महामहिम राज्यपाल के हस्ते मिला।

इसका समाचार समाचार पत्रों में छपा। जिसे पढ़कर आपको बहुत प्रसन्नता हुई और आपने पत्र के माध्यम से प्रोत्साहित करते हुए कहा, आपने तो ऊँची उड़ान भरी है। इसे मराठी में ‘शून्यातून सूर्याकडे’ कहा जाता है. शब्दशिल्प का घोषवाक्य भी ‘शून्यातून सूर्याकडे’ है।

आपने मुझे शून्य देखा था इस कारण आपको अधिक प्रसन्नता हुई. आपने इस उपलब्धि पर मेरे नाम से शब्दशिल्प का विशेषांक भी प्रकाशित किया. जिसके लिये शब्दशिल्प के संपादक कलाम साहब का आभारी हूँ!

आपके अनेकों हिन्दी-मराठी काव्य संग्रह, गजल संकलन, मुक्तक एवं हायकू संग्रह प्रकाशित है। अनेकों काव्य संग्रह प्रकाशन की प्रक्रिया में है आप अनेकâें पुरस्कार के मानकरी भी है।

आपने नवदितों को मंच प्रदान कराते हुए उन्हें साहित्य की मुख्य धारा में लाने का भागीरथ प्रयास किया है। कई कवि सम्मेलनों का आयोजन,संचालन भी किया है। अनेक कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता भी की है।

तू ज़माने में रहे होते जमाने की पसंद
नाम हो तेरा बुलंद और बुलंद और बुलंद

आप एक मुक्त पत्रकार भी है. आपने १९९२ से मुक्त पत्र कारिता की शुरुआत की। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी आपको बहुतसे पुरस्कार प्राप्त हो चुके है। आपको कई समाचार पत्रों, मासिक और साप्ताहिकों में काम करने का अनुभव है। वर्तमान में आप दैनिक भास्कर के उपसंपादक और शब्दशिल्प के संपादक के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। साहित्य सेवा में जी जान से लगे हुये हैं। आपका पूरा जीवन साहित्य को समर्पित है।

लेखक का कलम देश की शिक्षा के लिये है
सर वीर का सरद की सुरक्षा के लिये है
कमजोर समझते हैं हमें जो बता दो उन्हें जमील
‘ भारत का हर एक भारती भारत की रक्षा के लिये है

आप काम पर ही विश्वास रखते हैं, काम आपके लिये सबकुछ है, यही कारण है कि आपका साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में एक विशेष स्थान है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि काम के बोझ से ही मैं अपने दिमाग और शरीर को तेज़ और मज़बूत रख पाता हूँ’। हमारे काम ही हमें आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करते हैं!

निरंतर चलने वाला है
मंजिलें अपनी पाता है
सबक हमको यही
बहते हुये पानी से मिलता है

आपके सुवर्णमहोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में ढेर सारी बधाइयां !

Jameel Ansari

जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *