जमील अंसारी की कविताएं | Jameel Ansari Hindi Poetry
बेटियां
चंपा,गुलाब,मोगरा,चंदन है बेटियां।
रिश्तों को जोड़ देने का बंधन है बेटियां।
लाल,ओ,गोहर,अक़ीक़ है कंचन है बेटियां।
बाबुल का हंसता, खेलता आंगन है बेटियां।
पी,टी उषा हो सानिया या चावला,किरण।
दुनिया के कैनवास पे रौशन है बेटियां।
इज़्ज़त है आब्रु है ये ज़ीनत घरों की है।
किरदार और खुलूस का दर्पण है बेटियां।
आयत है ये क़ुरान की गीता का है श्लोक।
पूजा,भजन, इबादत,किर्तन है बेटियां।
है ये बहु किसी की तो बहना किसी की ये।
जीवन के एक मोड़ पे दुल्हन है बेटियां।
मिलता है जिसकी छांव से दिल को बड़ा सुकुं।
मां -बाप की नज़र में वो गुलशन है बेटियां।
जिनकी नज़र में बेटों का आला मुक़ाम है।
उनकी नज़र में बेटियों!उतरण है बेटियां।
बेटों से आगे बेटियां हैं हर मुक़ाम पर।
कहता है ये, जमील, के नंदन है बेटियां।
हे ईश्वर!
हे ईश्वर —!
मुझे हिन्दी का
ज्ञान दे,
हर पल इसका
प्रचार करूं
प्रसार करूं
इतनी शक्ति
महान दे!
हे ईश्वर —!
उठने से लेकर
सोने तक
आंखों के
बंद होने तक
हिन्दी की
सेवा का
वरदान दे!
हे ईश्वर —!
विश्व पटल
सबके मन पर
राज करे जो राज करे
हिन्दी को
इतना मान दे!
हे ईश्वर —!
विश्व पटल पर
फड़के हरदम
इसका झंडा
विश्व पटल पर
चमके हिन्दी
हिन्दी को
वह सम्मान दे!
हे ईश्वर —!
विश्व विजय हो
हिन्दी मेरी,
हिन्द भी मेरा,,
सरकार भी इस पर
ध्यान दे!
बच्चा, बूढ़ा और जवान
इस पर अपनी जान दे!
इसके लिए घर -घर में,
मीरा, तुलसी, रसखान दे!
देरी से
मंत्री महोदय,
” देरी से ”
बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का,
दौरा करने गए ।
फोटो खिंचवाने,
के उद्देश्य से,
नाले में उतरे,
संतुलन बिगड़ा,
और बह गए ।
विरोधियों का है,
इसमें हाथ,
जाते-जाते पत्रकारों से,
इतना कह गए ।
मां (मुक्तक )
अपना सुकुं लुटा के सुकुं बांटती रही,
हम गहरी नींद सोए तो मां जागती रही!
जाड़ों की सर्द रातों में खुद कांपती रही,
बच्चों को गर्म कपड़े मगर ढांकती रही!
डर
बच्चे ने कहा, पापा,
क्या होती है, एकता,
हर नेताओं के भाषण में
जिसकी होती है विशेषता,
बच्चे की बात सुन,
बाप मुस्कुराया,
बेटे को समझाया,
बेटा!यह तुम्हारे बस की बात नहीं,
आज के नेताओं को यह,
रास नहीं,
बच्चे ने बाल –हठ दिखलाया,
बाप के मन में,
एक विचार आया!
अनेक प्रकार के फूल,
वह तोड़ लाया!
फूलदान में सजाया!
और बेटे से कहा,
बेटा!—-बेटा!
इसे कहते हैं एकता,
यही है,
भारत की, विशेषता,
बेटा!हर नेता,
बड़े गर्व से,
इस बात को कहता है,
किंतु ——
उसे,डर, लगा रहता है,
यह सत्य हुआ तो,
हम अपनी,
राजनीतिक दुकानदारी,
कैसे चलाएंगे?
और —–और —-
आने वाले चुनाव में हम,
सरकार कैसे बनाएंगे?
जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर
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