अश्क़ भी वो गिराने लगते हैं
अश्क़ भी वो गिराने लगते हैं
अश्क़ भी वो गिराने लगते हैं
दूर जब भी हम जाने लगते हैं
बातों में मुस्कराने लगते हैं
हम उन्हीं के दीवाने लगते हैं
जब कभी मिलते हैं सनम मुझसे
तो अदा से रिझाने लगते हैं
बात जिस दिन भी हो जाये उनसे
दिन वही बस सुहाने लगते हैं
याद आती है जब कभी उनकी
प्यार के गीत गाने लगते हैं
दिल बहल जाता है हमारा भी
खुद को जब वो सजाने लगते हैं
जब भी देखा उदास है मुझको
किस्से अपने सुनाने लगते हैं
छेड़ कर तार वो मेरे दिल के
धड़कनें ही बढ़ाने लगते हैं
प्यार ये कम न हो प्रखर अपना
हारी बाजी जिताने लगते हैं
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )