दुश्मनों पे वार कर लूँ
दुश्मनों पे वार कर लूँ
आज खुल कर दुश्मनों पे वार कर लूँ
उनकी ख़ातिर ख़ुद को मैं अख़बार कर लूँ
रफ़्ता-रफ़्ता मैं तुम्हीं से प्यार कर लूँ
जब तलक साँसे हैं मैं इकरार कर लूँ
प्यार कर लूँ कुछ मैं अब तक़रार कर लूँ
उल्फ़तों से ज़ीस्त ये गुलज़ार कर लूँ
वो दवा देंगे यक़ीनन आ के मुझको
गर कहो तो ख़ुद को मैं बीमार कर लूँ
आसमां से गर उतर आया ही है तो
ईद के इस चाँद का दीदार कर लूँ
अब इन्हें दस्तार ओढ़ा कर वफ़ा की
रिश्तों को अपने मैं लाला-ज़ार कर लूँ
आफ़तो में साहिबे किरदार बन कर
मुश्किलों में ख़ुद को मैं ख़ुद्दार कर लूँ
छुट्टी तुझको भी मिले कुछ रोज़ की तो
तेरी ख़ातिर हर दिवस इतवार कर लूँ
हो मुक़म्मल अब ग़ज़ल मीना मेरी भी
ख़ूबसूरत अपने कुछ अशआर कर लूँ
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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