भूलना होगा | Ghazal Bhoolna Hoga
भूलना होगा
( Bhoolna hoga )
हमें ये लग रहा है की उसे अब भूलना होगा
मनाया है बहुत इस बार लेकिन रूठना होगा।
बहुत मसऱूफ़ है वो आजकल सब महफ़िलें छोड़ी
मगर रहता कहां है आज उससे पूछना होगा।
हमारी चाहतों ने कर दिया मग़रूर उस बुत को
बना है वो ख़ुदा कहता उसे अब पूजना होगा।
लगाता जा रहा है जख़्म वो हर बार किश्तों में
शिफ़ा जिससे मिले मरहम वही अब ढूढ़ना होगा।
समंदर सी है उसकी शख़्सियत सौ राज़ गहरे हैं
पता कुछ भी लगाना है अगर तो डूबना होगा
नहीं आसान है इतना भुलाना दुश्मने जां को
भुलाने के लिए सौ बार पहले टूटना होगा।
इशारों ही इशारों में नज़र कुछ कह गई उसकी
बड़ी मुश्किल पहेली थी नयन को बूझना होगा।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )