भविष्य से एक पत्र
बसंती दीपशिखा जब अपनी लेखनी में खोई हुई थीं, तभी दरवाज़े पर एक हल्की सी दस्तक हुई। उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने कोई नहीं था। लेकिन नीचे ज़मीन पर एक सुनहरे रंग का लिफाफा रखा था, जिस पर लिखा था—
“भविष्य से एक पत्र”
उन्होंने कौतूहल से लिफाफा खोला और पत्र पढ़ने लगीं—
प्रिय बसंती “दीपशिखा”,
मैं तुम्हारा भविष्य हूँ, तुम्हारे सपनों का संसार! मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ क्योंकि तुम हमेशा सोचती हो, “आगे क्या होगा?” मैं चाहता हूँ कि तुम यह जानो कि आगे जो होगा, वह तुम्हारी कल्पना से भी सुंदर होगा।
तुमने अपने शब्दों से समाज को जगाने का जो सपना देखा है, वह हकीकत बनने वाला है। तुम्हारी लिखी किताबें लाखों लोगों तक पहुँचेंगी, और नारी सशक्तिकरण की आवाज़ दूर-दूर तक गूंजेगी। तुम्हारे शब्द हिम्मत देंगे, सपने जगाएंगे, और नई रोशनी फैलाएँगे।
तुम्हारा मंच—’कहानी संकलन हिंदी साहित्य जगत की दीपशिखा’—अब एक आंदोलन बन चुका है। हजारों महिलाएँ अपनी कहानियाँ दुनिया के सामने ला रही हैं, आत्मविश्वास से भर रही हैं, और समाज की सोच बदल रही हैं।
और हाँ, तुम्हारे लिखे कुछ वाक्य, जो आज तुम्हारे कागज़ों पर हैं, कल स्कूलों की किताबों में होंगे। बच्चे उन्हें पढ़ेंगे, प्रेरणा लेंगे, और अपने जीवन को नई दिशा देंगे।
लेकिन दीपशिखा, याद रखो—भविष्य उन्हीं का होता है जो वर्तमान को पूरे जोश से जीते हैं। तुम्हारे पास आज जो समय है, वही सबसे बड़ी दौलत है। जो सपने तुमने देखे हैं, उन्हें पूरा करने के लिए तुम्हें आज ही पहला कदम उठाना होगा।
चिंता मत करो, सफलता तुम्हारा इंतज़ार कर रही है। बस अपने सफर पर चलते रहो।
तुम्हारा ही,
भविष्य
दीपशिखा ने पत्र पढ़कर मुस्कुरा दिया। उनके भीतर एक नई ऊर्जा जाग उठी। उन्होंने कलम उठाई और अपने अगले सपने की रूपरेखा बनाने लगीं—क्योंकि अब उन्हें यकीन था कि उनका भविष्य उज्ज्वल और अनमोल है!

श्रीमती बसन्ती “दीपशिखा”
हैदराबाद – वाराणसी, भारत।
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