Holi ki kavita

शरारत भरी होली

गाँव की होली का रंग हर साल कुछ अलग ही होता था। हर गली-मोहल्ले में गुलाल उड़ता, ढोल की थाप पर ठुमके लगते, और सबसे ज्यादा मस्ती होती थी बच्चों की टोली में। इस बार भी बबलू गैंग—बबलू, सोनू, चिंटू और पिंकी—ने कुछ नया करने की सोची।

गाँव के चौपाल पर हर साल ठंडाई बनती थी, और इस बार बबलू गैंग ने एक अलग ही योजना बनाई। उन्होंने खुद की बनाई “स्पेशल ठंडाई” तैयार की—जिसमें सिर्फ पुदीना, इलायची, गुलाबजल और चीनी थी, लेकिन लोगों को यही यकीन दिलाया कि इसमें हल्की भांग भी मिली है।

जैसे ही होली खेलकर थके लोग वहाँ पहुँचे, सोनू ने धीरे से कहा—
“संभलकर पीना… असर थोड़ा तेज़ है!”

बस, फिर क्या था!
सबने पहले डरते-डरते एक घूंट भरा, और फिर धीरे-धीरे “भांग का भ्रम” असर दिखाने लगा।

सबसे पहले असर हुआ काका पर, जो सालभर बड़े संयमी बनते थे। ठंडाई पीते ही वे अचानक नाचने लगे और बोले—
“वाह! ये तो ग़ज़ब की चीज़ है!”

फिर मिश्रा जी, जो हमेशा बच्चों को डांटते रहते थे, अचानक सबसे गले मिलने लगे—
“बबलू बेटा, आज से तू मेरा सबसे अच्छा दोस्त!”

शुक्ला जी —जो हमेशा सफ़ेदी से चमकते कपड़ों में रहते थे, डर के मारे ठंडाई पीकर चुपचाप बैठे रहे। लेकिन जब उनके दोस्त ने गुलाल उड़ाया, तो उन्होंने झूमते हुए होली पर एक अप्रतिम ग़ज़ल सुना दी।

गाँव के लोग अपने-अपने ख्यालों में बहने लगे। कोई खुद को हवा में उड़ता महसूस कर रहा था, तो किसी को लग रहा था कि उसके कपड़े इंद्रधनुषी हो गए हैं।

माहौल तब और मज़ेदार हो गया जब बबलू की माँ हँसते हुए बोलीं,

“अरे, इसमें कुछ भी नहीं था! ये तो बस सादी ठंडाई थी!”

बस फिर क्या था!
जो अब तक “नशे” में झूम रहे थे, वे एक-दूसरे को टकटकी लगाकर देखने लगे। कुछ को शर्म आई, तो कुछ पेट पकड़कर हँसने लगे। बबलू गैंग की इस मासूम चालाकी ने बिना भांग के ही सभी को होली के रंग में डुबा दिया था।

इस बार होली में सिर्फ रंग नहीं, बल्कि हँसी और मस्ती के ऐसे छींटे भी पड़े, जो रंगों से ज्यादा देर तक लोगों के चेहरों पर बने रहने वाले थे।

संदेश: होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, यह हँसी, दोस्ती और आपसी प्रेम का पर्व भी है। असली मज़ा सिर्फ रंग लगाने में नहीं, बल्कि एक-दूसरे को खुशी देने में है।

सुमंगला सुमन

मुम्बई

यह भी पढ़ें:-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *