अब तो पत्थर का हो चुका हूं मैं
अब तो पत्थर का हो चुका हूं मैं
अपने हिस्से का रो चुका हूं मैं,
अब तो पत्थर का हो चुका हूं मैं ।
बन गयी है लकीर गालों पर,
इतनी पलकें भिगो चुका हूं मैं।
देर से बात ये समझ आयी,
तुमको पहले ही खो चुका हूं मैं।
दम यक़ीनन निकल ही जायेगा
दिल में नश्तर चुभो चुका हूं मैं।
लाश तो कब की जल गई मेरी,
अब हवाओं का हो चुका हूं मैं।
अलविदा दोस्तों कहो मुझसे,
अपनी कश्ती डुबो चुका हूं मैं।
अजय जायसवाल ‘अनहद’
श्री हनुमत इंटर कॉलेज धम्मौर
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश