थोड़े ही है
( Thode hi hai )
जुल्मो – फ़रेब से हाशिल कामयाबी थोड़े ही है।
है मज़हब अलग तो ये खराबी थोड़े ही है।
जिन्होंने इंसानियत का पाठ पढ़ाया दुनियाँ को,
उनका ज्ञान महज़ किताबी थोड़े ही है।
जो जल रहा है नफ़रत की आग में रातो -दिन ‘सौमित्र ‘,
वो मंदिर का दुर्दांत पुजारी शराबी थोड़े ही है।।
नीचे धरती ऊपर आसमान नहीं है क्या?
नीचे धरती ऊपर आसमान नहीं है क्या।
और तुम्हारा कोई भगवान नहीं है क्या।
हरेक से प्रेम – भाव की नशीहत देता है जो ,
उन मजहबों का कोई एहसान नहीं है क्या।
‘सौमित्र ‘तुम्हारी वजह से जिसने बदल लिया पंथ ,
उसका अपना हिन्दुस्तान नहीं है क्या।।
डॉ.के.एल. सोनकर ‘सौमित्र’
चन्दवक ,जौनपुर ( उत्तर प्रदेश )
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