औरत | Aurat par kavita
औरत
( Aurat )
कोई कह दे तेरा अस्तित्व नहीं
मान ना लेना
जहां थक कर हारते हैं सब
वहीं शुरुआत करती है औरत
जहां पूजती है दूजे को
शक्ति रूपा पूजी जाती है औरत
कहने को कह देते हैं अबला
नव अंकुर को जन्म देती है औरत
संघर्ष प्रकृति का नियम है
संघर्षों से डरती नहीं औरत
हौसलों से गड़ती अपनी तकदीर को
पीछे कभी मुड़ती नहीं औरत
रिश्तो को निभाने मैं
खुद को भूल जाती है औरत
तिनका तिनका जोड़ कर
घर को स्वर्ग बनाती है औरत
खरी खोटी सबकी सुनकर
हंसकर टाल देती है औरत
कभी दासी कभी दुर्गा
हर रूप में दिखती है औरत
जिंदगी के थपेड़ों को
हंसकर झेलती औरत
लहू की बूंद से अपने
संतति को सींचती औरत
दुखों में टूटती आंसुओं में डूबती
सतत फिर उठ खड़ी गमों से जूझती औरत
कहने को तो केवल एक
बहन मां बेटी पत्नी
न जाने कितने रूपों में
दिखाई देती है औरत
दां साहित्य डॉट कॉम का मैं आभार प्रकट करना चाहती हूंl, जिन्होंने भारत भर के कवि कवित्रीयों को
अवसर प्रदान किया उत्कृष्टतम रचनाओं को प्रकाशित
भी किया और नवीनतम रचनाकारों को स्थान प्रदान
किया मैं पुनः कोटि कोटि-कोटि धन्यवाद देना चाहती हूं आगे भी अवसर प्रदान करते रहे