बच्चे मन के सच्चे | Bachchon ki poem
बच्चे मन के सच्चे
( Bachche man ke sachche )
बच्चे मन के सच्चे होते छोटे-छोटे प्यारे प्यारे।
खेलकूद में मस्त रहते जान से प्यारे नैन तारे।
नटखट नखरे बालक के भोली भोली बोली।
सीधे-साधे अच्छे बालक करते हंसी ठिठोली।
निश्चल प्रेम वो बरसाते संस्कार करके धारण।
तभी बालरुप में आते जगतपति खुद नारायण।
बच्चे मन के होते सच्चे सबका मन मोह लेते।
हंसी खुशी आनंद देकर सबको खुश कर देते।
संस्कारों का दीपक शिक्षा पा आलोकित होते।
बालक कर्णधार देश के सदा बीज प्रेम के बोते।
मात-पिता गुरुजनों का करते सदा बच्चे सम्मान।
प्यार दुलार स्नेह पाते चेहरों पे रखते मुस्कान।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )