Kavita dil toh baccha hai ji
Kavita dil toh baccha hai ji

दिल तो बच्चा है जी

( Dil toh baccha hai ji ) 

 

सुनता कहां किसी की कभी
करता रहता ये मनमानियां

दिलकश अदाएं इसकी बड़ी
चुपचाप रहता संग खामोशियां

किसी को बताता बिल्कुल नहीं
मनमौजी बहुत करता नादानियां

गुमसुम नहीं ये, यह मालूम है
मुझे है पता दिल तो मशगूल

अपनी ही धुन मैं रहता है ये,
छुटपन सी करता है शैतानियां

फिर भी संभालू मैं तो इसे
डर लगता भटक न जाए कहीं

इसे जिंदगी का अनुभव नहीं
हां ये दिल तो बच्चा है जी

हां हां थोड़ा कच्चा है जी
दिल तो बच्चा है जी

 

प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

यह भी पढ़ें :- 

एक प्रेम कविता | Prem ki poem

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here