बादल | Badal par kavita
बादल
( Badal )
खतरे के बादल मंडराये कहर कोरोना लेकर आये
सारी दुनिया कांप उठी सांसो की हम डोर बचाए
उमड़ घुमड़ नभ मे छा जाते काले काले मेघ आते
खुशियों की बारिश लाते ताल तलैया भर जाते
गड़ गड़ करते व्योंम में कड़कड़ बिजली दमकती
मूसलाधार बरसते रिमझिम रिमझिम झड़ी लगती
कभी गरजते कभी बरसते आंधी ओले लेकर संग
अश्रु धारा बन ढल जाते भावों का उर बहता रंग
कभी दिलों में प्रेम की वर्षा हंसी खुशी आनंद करें
प्रीत तराने होठों पे आकर हृदय में जब उमंग भरे
दुखों का पहाड़ टूटता जब संकट के बादल छाए
अंधकार जीवन में होता कोई रस्ता नजर ना आए
काले काले मेघ घनेरे आसमान पर बन जाओ
प्रेम सुधारस रहे बरसता प्यार के मोती बरसाओ
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )