यहाँ रोज़ जिसकी बहुत आरजू की
( Yahan roz jiski bahut aarzoo ki )
यहाँ रोज़ जिसकी बहुत आरजू की
उसी की बहुत कू ब कू जुस्तजू की
उसे फूल देने गया प्यार का था
उसी ने मगर साथ में ख़ूब तू की
उसे ख़ूब आवाज दी यार हमने
नहीं शक्ल उसनें मगर रु ब रु की
गिले वो लगा ख़ूब करने मुझी से
उसी ने नहीं प्यार की गुफ़्तगू की
कभी प्यार से देखती थी निगाहें
मुझी से उसी ने निगाहें अदू की
उसे प्यार की ख़ूब इज्जत यहाँ दी
उसी ने मुहब्बत ये बेआबरु की
मुझे अनसुना कर गया है वो आज़म
उसी ने बहुत और से गुफ़्तगू की