भागो नहीं, जागो | Bhago Nahi Jago
परिस्थितियों कभी समस्या नहीं बनती , समस्या इसलिए बनती हैं क्योंकि हमें उन परिस्थितियों से सही से लडना नहीं आता है । परिस्थिति तो अपने आप मे एक ही होती है, सबके अलग- अलग नजरिये होते है कि वो उसको किस रूप में लेता है।
वैसे काफी हद तक इसमें हमारे कर्म-संस्कार के कारण हमारे भावों से वो प्रभावित होती है,हम अपने होश में रहते हुए हर परिस्थिति के अनुकूल अपने आपको ढालने की कोशिश करें तो हम शान्तचित्त होकर उसके मनोनुकूल परिणाम पाने में काफी हद तक सक्षम हो पाते हैं।
हम कभी परिस्थिति को दोष देंकर, उसके सामने घुटने न टेकें, सम्यक् पुरुषार्थ के द्वारा परिस्थिति के अनुसार अपने आपको सम्यक् नियोजन करें तो सफलता मिलेगी, अगर न भी पा पाएं तो निराश न होयें, बल्कि अपने सम्यक् पुरुषार्थ से संतुष्ट होकर शान्तचित्त रहने का प्रयास करें, उसे नियति समझकर।
हालांकि कई बार अपने को समझाना बहुत कठिन होता है,कई बार परिस्थिति ऐसी बन जाती है कि वो हम पर हावी होने लगती है, जैसा कि पिछले वर्षों के समय की महामारी के प्रकोप में घर के घर बर्बाद हो गए, तो धैर्य डगमगाने लगता है,कोई बिरला ही उस परिस्थिति में शरीर और आत्मा के भेदविज्ञान को समझते हुए शरीर की नश्वरता को समझकर उस समय शांत रह पाता है, लेकिन बहुत जल्दी सम्भल जाना ही, ऐसी परिस्थिति से , हमारे लिए , बहुत जरूरी है।
हम भावों को प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा शुद्धतम बनाते जाएं सर्वदा। भावों में बहुत ज्यादा शक्ति होती है, इसका हर समय हमें स्मरण रहें,हम उसे कभी भी कम समझने की भूल न करें। इसलिए संसार से भागो नहीं संसार में रहते हुए ही जागो।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)