बिन पेंदी का लोटा | Bin Pendi ka Lota

वर्तमान समय में देखा जाए तो हिंदू समाज बिन पेंदी के लोटा की भांति हो गया है। जिसने जैसा चाहा उसे वही मोड़ दे रहा है। उसकी श्रद्धा जैसे किसी एक जगह स्थिर नहीं रहती है।

वह कभी राम जी को मानता है , तो कभी कृष्ण को तो , कभी दरगाह मजार पर चादर भी चढ़ा आता है तो कभी यीशु दरबार में भी चक्कर लगा लेता है।

इस प्रकार से देखा जाए तो हिंदुओं को जहां हांक दिया जा रहा है वहीं भेड़ियों की भांति चल देते हैं। यही कारण है कि हिंदुओं के जहां देखो वहां नए-नए अवतार पैदा होने लगते हैं।

इस समय पूरे भारत में हजारों की संख्या में कल्की अवतारी बाबाओ की संख्या बढ़ती जा रही है । जो अपने को भगवान का दसवां अवतार सिद्ध कर रहे हैं।

इसी प्रकार से सांई बाबा की मूर्ति हिंदू अपने मंदिरों में स्थापित कर चुका है । अधिकांश हिंदुओं को यह पता है कि साईं बाबा चांद मियां नाम का मुल्ला था जो की घोर हिंदू विरोधी था ।

लेकिन बिन पेंदी के लोटे को क्या कहा जाए? कई कई जगह तो अपने राम-कृष्ण ,हनुमान शिव जी की मूर्तियों से भी बड़ी साईं बाबा की मूर्ति स्थापित कर चुका है। यह केवल मात्र जनता से थोड़ी सी दो कौड़ी ज्यादा चढ़ावा के चक्कर में पुजारी करा रहे है।

आसपास कहीं पीपल का पेड़ दिख जाए तो वहां लंगोटी और घंटी बांधने वालों का तांता लग जाता है। मैंने कोई भी ऐसा पीपल का वृक्ष नहीं देखा जहां लोग लंगोटी और घंटी ना बांधे हो। इन कार्यों में औरतें कुछ ज्यादा सक्रिय रहती हैं। समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास भी औरतों के ही कारण फल फूल रहा है।

अभी कुछ दिनों पूर्व मैं शाम को घर लौटा तो देखा कि वहां पर कुछ लोग झंडी आदि लेकर के खड़े हुए थे। जिसमें अधिकांश हिंदू थे। उस समय गर्मी अपनी प्रचंड रूप में थी। पता चला कि सभी गाजी मियां की बारात में बाराती बन करके जा रहे हैं।

आज से हजारों वर्षों पूर्व हिंदुओं के मन में व्याप्त यह अंधविश्वास है कि निकल ही नहीं रहा है। हिंदू संस्कृति में मुर्दों की पूजा का कोई उल्लेख नहीं है। हिंदुओं में कोई अपने पूर्वजों की मजार दरगाह बनाकर के पूजा नहीं करता है। लेकिन बिन पेंदी के लोटे को क्या कहा जा सकता है?

यह हिंदुओं कि श्रद्धा नहीं बल्कि मूर्खता है। जो व्यक्ति मर गया। जिसकी हड्डी पसली का भी पता नहीं वह क्या तुम्हारी सहायता करेगा? लेकिन क्या कहा जाए पीढ़ी दर पीढ़ी यह अंधविश्वास चला आ रहा है।

मैंने देखा है कि हमारे गांव में अधिकांश हिंदू मजार, दरगाह आदि की पूजा किया करते हैं? हिंदुओं में मुर्दों को प्रवाहित करने के बाद घर लौटने पर घर में घुसने नहीं दिया जाता बल्कि सारे कपड़े आदि उतरवा कर स्नान आदि करने के बाद ही लोग घर में प्रवेश करते हैं।

लेकिन वही एक मुर्दे की पूजा करके लोग अपने को पवित्र कैसे मान ले रहे हैं ? ऐसे लोगों को चाहिए कि वह घर में प्रवेश स्नान आदि के बाद करें क्योंकि मुर्दे तो मुर्दे होते हैं।

इस प्रकार के अंधविश्वासों को जिंदा रखने में हिंदुओं की औरतों का बहुत बड़ा हाथ है। मैंने देखा है कि मजार, दरगाह आदि में पुरुष नाम मात्र के जाते हैं। अधिकांश औरते ही सिर फोड़ती, आव- बाव बकती दिखाई देती हैं।

इस समय गांव में ईसाई मिशनरियों का जाल भी बहुत तेजी से फैल रहा है। अधिकांश निम्न तपके के हिंदू स्वार्थवस ईसाइयों के चक्कर में फंसते जा रहे हैं। यह हिंदू ऊपर से देखने में हिंदू ही दिखते हैं लेकिन उनका संपूर्ण आंतरिक मनोभाव बदला हुआ रहता है।

यह लोग यीशु दरबार आदि में जाने के बाद उनके मन में इतनी घृणा भर दी जाती है कि वह अपने पूर्वजों को ही गाली देने लगते हैं। उनके लिए यीशु ही भगवान बन जाते हैं।

इन लोगों को हम चाहे जितना समझाएं उन्हें कुछ समझ में नहीं आता है क्योंकि ऐसे दरबार में जाने के बाद उनका संपूर्ण मनोभाव बदल दिया जाता है। यदि अन्य धर्म से हिंदुओं को तुलना की जाए तो जैसा हिंदू बिन पेंदी का लोटा है अन्य धर्म में वैसा नहीं है।

हिंदुओं को चाहिए कि इस प्रकार के क्रियाकलाप से बचे । जिसने जो बताएं वहीं पर चल दिए। अपनी संस्कृति सभ्यता पर गर्व करना चाहिए। ऐसा ना हो कि जिसने जो बताया सबको सत्य मानने लगे।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें:-

गांव देहात की यादें | Gaon Dehat Ki Yaadein

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *