भगवान श्री कृष्ण का जन्म हम प्रति वर्ष मानते हैं लेकिन सीखते कुछ नहीं, यही हमारी विडंबना है। एक बार महाभारत हो गया फिर भी नहीं सुधरे हम। कितनी खून की नदियाँ बहानी पड़ेगी? कृष्ण को कितनी बार जन्म लेकर ये बताना पड़ेगा कि आपस में प्रेम से रहो। प्रेम से रहने में क्या कठिनाई है।

हिरोशिमा-नागासाकी जैसी घटनाएं दोहराने की बात रोज हो रही है। यूक्रेन और रूस का युद्ध अभी तक खत्म नहीं हुआ। कहीं न कहीं युद्ध विश्व में चलता ही रहता है। लगता है मनुष्य का पेट युद्ध से अभी तक भरा नहीं। बार-बार वह युद्ध जैसी बात करता है, यह सही नहीं है। इससे संसार कितने पीछे चला जाता है। महंगाई, बेरोजगारी में काफी इजाफा होता है।
मिलकर रहने में क्या तकलीफ है? बारूद के ढेर पर हम क्यों सोएं ?

धरती पर नये-नये रोज बम बरसाए जा रहे हैं। जन – धन की हानि हो रही है। पर्यावरण का तहस -नहस किया जा रहा है। परमाणु संपन्न देश गाहे – बगाहे एटम-बम की चुनौती देते ही रहते हैं।

जन्माष्टमी मनाने के पीछे की यही हक़ीक़त है कि हम एक सुन्दर संसार की रचना करें और उस संसार में क्या गरीब-क्या अमीर सभी समन्वय बनाकर रखें। मानवता की डगर चलें। किसी देश में खाने की कोई कमी न रहे। करोड़ों लोग हर साल भूख से दम तोड़ रहे हैं।

जन्माष्टमी मनाने का मतलब नदियाँ पानी से लबालब भरी रहें। फसलें खेतों में सजी रहें। वन फलों से सजे रहें। शीतल, मंद पवन बहती रहे। आकाश में आकर समय समय पर बादल बरसते रहें। नदिया पानी से सदा लबालब भरी रहें। अपने मीठे जल से सभी को नया जीवन देती रहें।

परिंदे लचकदार डालो पर कलरव करते रहें और नील गगन में बिना किसी डरके वो उड़ते रहें। अखिल विश्व की अवाम सुखी और संपन्न रहे। क्या अमीर, क्या गरीब सभी नीरोगी रहें। पर्यावरण की सेहत सदा मजबूत बनी रहे। जंगल कटे नहीं,बल्कि पेड़ अधिक से अधिक लगाए जाएँ । चीख -चीत्कार से ये गगन कभी न कांपे।

महिलायें महफूज रहें है लेकिन आए दिन उनका चीर हरण हो रहा है। इस बिगड़े जमाने में भगवान श्री कृष्ण से ये सीखें कि सभी की सुख-शान्ति में ही अपनी सुख-शन्ति निहित है। यहाँ समझने वाली बात ये है कि अखिल विश्व में किसी एक की सोच से बात बनने वाली नहीं है। हरेक की सोच से ही विश्व में परिवर्तन दिखेगा।

माना कि हमारा देश विश्व व्यापी सोच रखता है चीन की तरह विस्तारवादी नीति नहीं रखता। तप, त्याग, संयम की बुनियादी पर खड़ा ये देश सभी को अपना कुटुंब मानता है और उसी तरह का व्यवहार भी करता है।

भगवान श्री कृष्ण के सन्देश को आधार बनाकर हम आज के हालात को निश्चित रूप से सुधार सकते हैं, इसमें संशय नहीं। भगवान श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता का उपदेश देते हुए कहे थे कि इंसान को श्रेष्ठ कर्म ही करने चाहिए जिससे मानवता अक्षुण्ण बनी रहेगी। मानवता की सुगंध हर किसी को लंबी आयु देती है।

भगवान श्री कृष्ण ने ये भी कहा था कि जीवन में अति करने से बचें और निष्काम भाव से काम करते रहें लेकिन आज की स्थिति इसके उलट है। लोग स्वार्थी बनते जा रहे हैं। अपनी इच्छाएं को नियंत्रित करने के बजाय बढ़ाते जा रहे हैं। दिनोंदिन लिप्सा बढ़ती जा रही है। अन्याय में बढ़ोत्तरी होती जा रही है।

मानवता कलंकित होती जा रही है। छेड़छाड़, अनाचार, दुराचार, व्यभिचार जैसी घटनाओ में इजाफा होता जा रहा है। भगवान श्री कृष्ण की इस जन्माष्टमी से हमें ये सीख लेनी चाहिए कि हमारा आज का समाज और उन्नत हो। सभी एक दूसरे का सम्मान करें। सभी धर्म एक समान हैं। कोई भी धर्म बुराई का सन्देश नहीं देता।

आत्मा अजर-अमर है। एक कपड़े की भाँति यह शरीर बदलती रहती है और दूसरा शरीर धारण करती रहती है। जो आज आपका है, कल किसी और का था,कल किसी और हो जाएगा। इस तरह भगवान श्री कृष्ण कुछ भी संचय करने की बात नहीं करते। आज लोग धन का संचय इस तरह कर रहे हैं जैसे मृत्यु के दिन लाद के ले जायेंगे। अगर धन का संचय समान गति से हो तो सभी का जीवन अति सुन्दर हो सकता है। इच्छाएं अनंत हैं।

इच्छा पूरी न होने पर प्राणी को फिर से पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है। मदर टेरसा अल्वेनिया की होकर भी इस देश को अपनी मुक्ति के लिए चुनी। आइये हम इस पावन पर्व पर भगवान श्री कृष्ण से यह प्रेरणा लें कि आनेवाली दुनिया खूबसूरत बने। सभी नीरोगी और स्वस्थ्य हों। विश्व में कहीं भी युद्ध जैसे आसार और हालात न बनें। सभी को जीने का समान अधिकार और अवसर मिले। बस खुशियों की बारिश हो।
जय श्रीकृष्ण….!

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)

यह भी पढ़ें :-

चाँद की चाँदनी | Chand ki Chandni

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here