मैं नदी का शोर हूँ
मैं नदी का शोर हूँ ( पूर्णिका ) मैं नदी का शोर हूँ मैं हूँ परिंदों का बयान, काट सकते हो अगर तो काट लो मेरी ज़ुबान। मैं अगर मिट्टी महज़ होता दफ़न आसान था।मैं हवा हूँ, रोशनी हूँ छेंक लूंगा आसमान । बिक रहे हैं ख़ुशनुमा नक़्शे खुले बाज़ार मेंखेत में उगता नहीँ हंसता…