सिगारवाला छोरा | Cigarwala Chora
सायंकाल का वक्त है । सूरज डूबना चाहता है परंतु अपनी लालिमा को प्रकृति की मोहकता बिखेर रहा है । वहीं बेंच पर बैठा एक छोरा चारों ओर देखा है। उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा है वह कुछ पाना चाह रहा है। मैं भी उसी बेंच पर बैठ गया। मैं शांत चित्त बैठा रहा ।
हमारे उसके बीच मौन का स्वर गूंज रहा था। नजरें मिली तो मैं मुस्कुरा दिया। वह भी मुस्कुराने लगा। मैं और तेज से मुस्कुरा दिया । वह भी तेजी से हंसने लगा । अब जब उसे यह लगने लगे बात बनने वाले तो बोला — “यार भाई ! मैं सिगरेट पीना चाहता हूं ।
यह लत शाली ऐसी है कि मानता नहीं।”। क्या चलेगा फिर एक डिब्बी सिगरेट को निकाल दो सीक्रेट जलाने लगा तो मैंने कहा–” दो क्यों जला रहे हो ! उसने कहा -“एक आपके लिए” मैंने कहा-” मैं नहीं पीता”। फिर वह कहने लगा-” अरे दोस्त! जवानी किस लिए मिली ।
कल रहे या ना रहे इसलिए जिंदगी के मजे लेने में नहीं चूकना चाहिए। जब तक जिंदगी है बिंदास जीना चाहिए । जो है खाओ- पियो, मौज करो ।” कहते हुए वह सिगरेट के कश खींचने लगा । सीकरेट खींचने के साथ जमीन की ओर ताकता जा रहा था ।
मुझे लगा कि यह बहुत तनाव में लगता है जो अपने दुख को छिपाने के लिए जिंदगी को धुएं में फूंक रहा है । वैसे भी युवाओं में कुछ तो शौक बस पीने लगते हैं और अधिकांश तो जिंदगी के गम को भूलाना चाहते हैं । और एक दिन धुएं के साथ ही जिंदगी धुएं में उड़ जाती है ।
मैंने कहा-” क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि धुआं में जिंदगी उड़ती जा रही। आप भी कैसी बातों में उलझ गए जनाब । जिसे आप धुएं में उड़ना कह रहे हो वही तो जिंदगी का असली आनंद है।
जरा एक लेकर तो देखो । जन्नत आपके चारों ओर दौड़ने लगेगी। कहते हुआ शिकार पीता रहा । मैंने सोचा-‘ अजीब लड़का है यह तो! मुझे ही पाठ पढ़ाने लगा’। नाम पूछने पर उसने पवन बताया। तो मैं खूब तेजी के साथ हंसा। हंसी रुकी तो उसने कहा_” आप क्यों हंसे मैं समझा नहीं।” अरे जनाब अब इतना भी नहीं समझे पवन हो और जिंदगी को धुएं की पवन की तरह उड़ाते जा रहे हो?
क्या यही है जीवन ? मेरे ऐसा कहने से पहले तो वह कुछ झपका। फिर भी वह स्वयं को हताश नहीं करना चाहता था । एक ठंडी आह भरी फिर बोला-” भाई जान ! मात्र भाषण से जिंदगी नहीं चलती ।यदि आपको सुधारना ही है तो उनको सुधारो जो असहाय, बेसहारा, पिछड़ों के खून पी- पीकर धुएं में उड़ा देते हैं ।
क्या आपने कभी यह सोचा है कि देश में भुखमरी, गरीबी क्यों इतनी बढ़ रहे? क्यों आतंकवाद, माओवाद देश की सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा है ? भाई जान ! आप नहीं जानते इन पूजी पतियों ,व्यापारियों एवं सफेद खद्दर के पीछे छुपे जहरीले नागो के कारण है ।
जो डस ले तो सीधे स्वर्ग की सीढ़ी दीखती है । युवाओं को रोजगार नहीं ,पीने को पानी नहीं, खाने को सूखी रोटी नहीं, इनके घरों में देखेंगे तो कुत्ते भी रसमलाई चाभता है? क्या मनुष्य इन कुत्तों से भी गया गुजरा बनकर रह गया है?
मां कसम मैंने इन पूंजीपतियों को सिगरेट के धुएं की भांति न उड़ा दिया तो मेरा नाम भी पवन नहीं ! भाईजान समझो समस्या को! भावनाओं में मत बहो! शायद आपको यह भी नहीं मालूम होगा यह भगवा वस्त्रधारी साधुओं की हालत और भी बदतर होती जा रही है ।
दुआ ताबीज के नाम पर ये करोड़ों का कारोबार भगवान को बेचकर करते रहते हैं ? रातो रात करोड़ों अरबों का आश्रम कैसे रातों-रात बन कर तैयार हो जाता है? अंध भक्ति में डूबे भक्त कभी जानने का प्रयास नहीं करते ।
उसकी तर्कपूर्ण ज्ञान की बातों से लगा कि कितना सच कह रहा है । पर सच सदा कड़वा होता है। उसे हम कहां सुनना चाहते हैं। मैं तो उसे सिगार पीनेवाला छोरा ही समझ रहा था परंतु कभी-कभी ऐसे लोग मिल जाते हैं जो थोड़े में ही बहुत सिखा जाते हैं।
फिर उसने जेब से सिगरेट निकाल कर जलाए और फूंक मारने लगा। मेरी इच्छा अब यह नहीं हो रही थी उसे कोई बड़ा सा लेक्चर पिलाऊं। वह मुझे देख कर मुस्कुराने लगा । फिर हम दोनों अपने -अपने रास्ते चल दिए एक नई मंजिल की खोज में।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )