जलवायु परिवर्तन के कारण और संभावित परिणाम
जलवायु परिवर्तन के कारण और संभावित परिणाम

निबंध : जलवायु परिवर्तन के कारण और संभावित परिणाम

( Causes and possible consequences of climate change : Essay In Hindi )

 

प्रस्तावना (Introduction) :-

किसी भी स्थान का दीर्घकालीन मौसम वहां की जलवायु कहलाता है। इसमें वायुमंडल का दबाव, तापमान आदि होता है।

इसमे हवाओं की गतिविधि तथा बादलों की गतिविधि आदि का सम्मिलित अध्ययन किया जाता है। भूगोल शास्त्र के अनुसार सदियों पूर्व जलवायु का अध्ययन प्रारंभ हो गया था। 624 से 546 ईसा पूर्व में यूनानी गणितज्ञ व खगोल शास्त्री ने जलवायु परिवर्तन की नींव रखी थी।

मौसम और जलवायु में अंतर यह है कि मौसम भिन्न-भिन्न ऋतु में अलग अलग होता है। वही जलवायु स्थिर रहती है।

लेकिन जिस जलवायु स्थिर रहना चाहिए वह अब कुछ प्राकृतिक और मानवीय कारणों से स्थिर नहीं रह पा रही है। परिणाम यह है कि जलवायु परिवर्तन की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

जलवायु परिवर्तन से आशय जलवायु में दिखने वाली बदलाव से लिया जाता है। यह बदलाव प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों से हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के एक दो महीने या 1 वर्ष में नहीं होते बल्कि कई दशक और कई बार लाखों वर्ष के समय का परिणाम होते हैं। इसका वैश्विक प्रभाव और क्षेत्रीय प्रभाव भी देखने को मिलता है।

इस समय जलवायु परिवर्तन की समस्या न सिर्फ भारत बल्कि विश्व के अनेक देशों में हैं। इसलिए यह एक वैश्विक समस्या बन गई है।

वैश्विक सम्मेलनों में जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाया जाता है। 2011 में डरबन में हुए अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में वैश्विक समस्या पर मंथन किया गया था।

कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन में भी इस पर विचार विमर्श होता रहता है। बेमौसम बारिश, ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, सुनामी जैसी समस्या जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है।

जलवायु परिवर्तन के कारण ( Causes of climate change in Hindi )  :-

वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन की वजह से जो समस्याएं आ रही हैं उसका कोई एक निश्चित कारण नहीं है।

इसमें कुछ कारण प्रकृति से जुड़े हैं तो कुछ के लिए मानव समाज उत्तरदाई है। प्राकृतिक कारणों से ज्यादा मानवीय कारणों से जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक संकट के रूप में उभर रहा है।

प्राकृतिक कारण में प्रमुख रूप से ज्वालामुखी और महासागरीय धाराएं जिम्मेदार हैं।

ज्वालामुखी ( Volcano ) :

भूपर्पटी की दरारे जिसके अंदर से  चट्टान लावा, भस्म और जैसे निकलती हैं ज्वालामुखी कहलाते हैं। ज्वालामुखी फटने से अनेक प्रकार के जैसे बाहर निकलते हैं जिसमें सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, क्लोरीन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फर, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे गैसे होती है।

यह गैसे धूल कण तथा राख के साथ वायुमंडल में फैल कर जलवायु को प्रभावित करती हैं। ज्वालामुखी जब शांत हो जाती है तो लंबे समय तक यह जलवायु में सक्रिय रहकर जलवायु को प्रभावित करती हैं क्योंकि ज्वालामुखी विस्फोट के कारण यह जैसे बहुत ऊपर तक जाती हैं और सालों तक पर मंडल में विद्यमान रहती हैं। नतीजा यह होता है कि जलवायु प्रभावित होती है।

महासागरीय धाराएं ( Ocean currents ) :-

पृथ्वी की सतह पर लवण जल का विशाल फैलाव महासागर से होता है। पृथ्वी का 70% से अधिक हिस्सा जल से घिरा है। ऐसे में यह जलवायु निर्धारण का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

समय-समय पर समुद्र  वायुमंडल में ताप छोड़ता है जिसकी वजह से जलवायु प्रभावित होती है। यह ताप जलवाष्प के रूप में धरती पर ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को बढ़ा देता है। इस तरह महासागरीय धाराएं जलवायु को प्रभावित करने में योगदान करती हैं।

जलवायु परिवर्तन के लिए प्राकृतिक कारणों से ज्यादा मानव जनित कारण जिम्मेदार हैं। इस पर मानव ने बहुत देर से ध्यान देना शुरू किया है। आइए जानते हैं मानव जनित करण के बारे –

ग्रीन हाउस प्रभाव ( Green House Effect ) :

ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण जलवायु परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है।

वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में उतार-चढ़ाव प्राकृतिक कारण से होता है और मानव जनित कारणों से भी।

औधोगिकरण के बाद उद्योग धंधों में तेजी आई। शहरी करण की प्रक्रिया को गति मिली। नतीजा वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगी।

दूसरी तरफ वनों की अंधाधुंध कटाई और दोहन के कारण पेड़ पौधों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में परिवर्तित करने की प्रक्रिया धीमी पड़ गई और यह स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती गई।

कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा अन्य घातक गैस वायुमण्डल में पहुंचने लगी, जिसमें मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन शामिल है। यह सब मिलकर ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ा देती हैं और जलवायु परिवर्तन की समस्या देखने को मिलती है।

कृषि ( Agricalture ) :-

जलवायु परिवर्तन में कृषि क्रियाकलाप का भी योगदान है। आज परंपरागत खेती के जगह आधुनिक खेती होने लगी है। खेती में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है।

जलमग्न चावल की जुताई से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता। नतीजा वातावरण में मीथेन गैस बनने से ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ रहा है।

जीवाश्म ईंधन ( Fossil fuel ) :-

जीवाश्म आधारित ईंधन के दोहन से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन बड़ा है। वायु और जल प्रदूषण भी बड़ा कारण है।

कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे ज्यादा उत्सर्जन कोयले के दोहन के कारण होता है। तेल के दहन से वायुमंडल में यह 30% तक कार्बन डाइऑक्साइड को उत्सर्जित करता है।

शहरीकरण और औद्योगीकरण (Urbanization and industrialization ):-

बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के लिए इंसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया। पेड़ पौधों की कटाई की गई।

वन क्षेत्र को समाप्त किया गया। पर्यावरण की हद दर्जे की छेड़छाड़ की गई। नतीजा प्रदूषण बड़ा और जलवायु परिवर्तन की समस्या सामने आ रही है।

जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम ( Side effects of climate change in Hindi ) :- 

  • बढ़ती गर्मी के कारण नदियों तालाबों झीलों और महासागरों का पानी तेजी से भाप बन कर उड़ जा रहा है। जिसकी वजह से बाढ़ की समस्या बढ़ रही है।
  • बढ़ती गर्मी के कारण कई जगहों पर वायुमंडलीय दबाव अचानक से कम हो जाता है जिसके कारण आंधी तूफान का प्रकोप देखा जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन से कृषि भी प्रभावित हो रही है। पौधों में नमी के अभाव हो रहे हैं तापमान वृद्धि की वजह से फसलें नष्ट होने लगी हैं। मिट्टी में पानी की कमी हो जाने से मौजूद कार्बनिक पदार्थ का विघटन और पुनर्चक्रण ठीक ढंग से नहीं हो रहा है जिसका असर पैदावार पर पड़ रहा है।
  • अत्यधिक तापमान के कारण नए प्रकार के कीड़े मकोड़े उत्पन्न हो रहे हैं। उन पर कीटनाशकों का प्रभाव कम हो रहा है। परिणाम स्वरूप फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो रही है।
  • बढ़ते तापमान की वजह से उत्पादन भारी कमी आई है और पर्यावरण और संतुलित हो रहा है  बढ़ते तापमान की वजह से ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगी है जिससे महासागरों का जलस्तर बढ़ने लगा है और तटीय क्षेत्र जलमग्न हो रहे हैं। असम में वर्षा और सूखा जलवायु परिवर्तन का ही दुष्परिणाम है।
  • ग्रीन हाउस गैसों के कारण ओजोन परत को क्षति पहुंच रही है। जिससे सूरज से आने वाली पराबैंगनी किरणें अनेक प्रकार की बीमारियों को बढ़ा रहे हैं।

निष्कर्ष  (The conclusion) :-

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती बन गई है। इससे उबरने के लिए संतुलित और सम्मिलित प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। धरती को बचाने के लिए वैश्विक पहल की जरूरत है।

सभी देशों को साथ में मिलकर चलना होगा। यदि इस समस्या के समाधान हेतु वैश्विक समुदाय पर्यावरण संरक्षण के लिए भारतीय दर्शन से प्रेरणा ले तो कुछ सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं।

लेखिका : अर्चना  यादव

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