दलित की यथार्थ वेदनाविदा
दलित की यथार्थ वेदनाविदा
घर की खिन्नता को मिटाऊँ,
या समाज की उन्नति जताऊँ l
क्यूँ भूल गए है हम ,
एक डाल के फूल है हम l
क्लेश से व्याकुलता तक ,
साहित्य से समाज तक l
दलित की गति अम्बेडकर जी है ,
तो दलित की यति वाल्मीकि जी है l
न भूलूँ गत अनुभव ,
न छोडूँ अस्त भव l
साँझा जिसने समाज रेखा ,
सूझा जिसको समाज देखा l
तुम समझ सको ,
मेरी थरथराहट को l
मेरा जीवन सबूत है ,
मेरा विद्रोह उपेक्षित है l
दलित की गति अम्बेडकर जी है ,
तो दलित की यति वाल्मीकि जी है l
भूख रोटी की नहीं , समानता की है ,
प्यास पानी की नहीं , संघनी की है l
घृणितता का रोष बना गम ,
मानव सिद्धांत बना भरम l
तंगी में जिया , गरीबी में पला ,
कहाँ है चैन , जो जी लूँ भला l
दलित की गति अम्बेडकर जी है ,
तो दलित की यति वाल्मीकि जी है l
कहा , तुम पैरों से जन्मे हो ,
मैं ने पूँछा , तुम कहाँ से जन्मे हो l
फिर भी फिलिया न मिला ,
और फोबिया बढ़ता चलागया l
पीढ़ा से ऊब कर संघर्ष थामा ,
बाबासाहेब की गति से l
जुड़े वक्ता संघर्ष से ,
और दलित जुड़ा समाज से l
दालित की गति अम्बेडकर जी है ,
तो दलित की यति वाल्मीकि जी है l
वाहिद खान पेंडारी
( हिंदी : प्राध्यापक ) उपनाम : जय हिंद
Tungal School of Basic & Applied Sciences , Jamkhandi
Karnataka
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