Kavita Khwabon mein Jalayegi
Kavita Khwabon mein Jalayegi

ख्वाबों में जलाएगी!

( Khwabon mein Jalayegi ) 

 

ये जिस्म नहीं है बस आग बुझाने के लिए,
अंतिम है इसका लक्ष्य मोक्ष पाने के लिए।
अपनों से जंग बताओ कोई क्या लड़ेगा,
अगर करो भी सौदा तो हार जाने के लिए।

होता है गम बाढ़ के पानी के जैसा दोस्तों,
बस साँसें टिकाए रखो खुशी पाने के लिए।
तू नहीं जलाए वो मुझे ख्वाबों में जलाएगी,
कब से पीछे पड़ी है घर बसाने के लिए।

क्या करूँ मुझे तलब किसी और की लगी,
आती है रोज छत पे मुझे सताने ले लिए।
मैं किसी की शर्तों पे आखिर क्यों जिऊँ,
वो आती है बदन में आग लगाने के लिए।

मैं रात की बदन पे लिखना चाहता हूँ नग्में,
जमाने को अपनी पहचान बताने के लिए।
गायब होता जा रहा है गुफ़्तगू से आदमी,
लम्हें कहाँ बचे अब हँसने -हँसाने के लिए।

जंग की बाहों में घिरती जा रही ये दुनिया,
धूप तरस रही है आंगन में आने के लिए।
कहीं मुरझा न जाए उसके हुस्न का बगीचा,
चलता हूँ उस तपिश से उसे बचाने के लिए।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )

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