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ये क्या अजब दास्तां बन गई | Dastan shayari

ये क्या अजब दास्तां बन गई

( Ye kya ajab dastan ban gayi )

 

ये क्या अजब दास्तान बन गई ,
खव्वाहिशे उसकी मेरे अरमान बन गई I

 

जिन राहो से गुजर गये वो कभी ,
वो मेरी मंजिलों की निशान बन गई I

 

दर्द के आगोश में तमन्नाओ की शाम ,
मेरी हर उजली स़हर की निगाहेबान बन गई I

 

दायरों में बसना और सींकचों में हंसना ,
ज़िन्दगी इस कदर मुझ पर मेहरबान बन गई ।

 

अपनी बेकसी पर झलके जो कभी आँसु “गौतम”,
तो एक अनकहे दर्द की जुबान बन गई ।

❣️

शायर: गौतम वशिष्ठ

मेरा परिचय

नाम- गौतम वशिष्ठ
माता- श्रीमती मीना देवी
पिता- श्री सन्त कुमार शर्मा
स्थायी निवास- ग्राम- बसई, जिला-झुन्झुनूं (राजस्थान)
शिक्षा- एम.ए., बी.एड.
व्यवसाय- व्याख्याता ( राजनीति विज्ञान )
वर्तमान पदस्थापित – कार्यालय मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी , खेतड़ी
ग़जल , कविता लिखने की कोशिश करता हूं ।

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