ये क्या अजब दास्तां बन गई | Dastan shayari
ये क्या अजब दास्तां बन गई
( Ye kya ajab dastan ban gayi )
ये क्या अजब दास्तान बन गई ,
खव्वाहिशे उसकी मेरे अरमान बन गई I
जिन राहो से गुजर गये वो कभी ,
वो मेरी मंजिलों की निशान बन गई I
दर्द के आगोश में तमन्नाओ की शाम ,
मेरी हर उजली स़हर की निगाहेबान बन गई I
दायरों में बसना और सींकचों में हंसना ,
ज़िन्दगी इस कदर मुझ पर मेहरबान बन गई ।
अपनी बेकसी पर झलके जो कभी आँसु “गौतम”,
तो एक अनकहे दर्द की जुबान बन गई ।
शायर: गौतम वशिष्ठ
मेरा परिचय
नाम- गौतम वशिष्ठ
माता- श्रीमती मीना देवी
पिता- श्री सन्त कुमार शर्मा
स्थायी निवास- ग्राम- बसई, जिला-झुन्झुनूं (राजस्थान)
शिक्षा- एम.ए., बी.एड.
व्यवसाय- व्याख्याता ( राजनीति विज्ञान )
वर्तमान पदस्थापित – कार्यालय मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी , खेतड़ी
ग़जल , कविता लिखने की कोशिश करता हूं ।