धर्म का धंधा | Dharm ka Dhandha
सदियों से यदि कोई धंधा सबसे समृद्ध शाली रहा है तो वह धर्म का रहा है। यह ऐसा धंधा है जो सदैव लाभकारी होता है। अन्य धंधे में तो हानि की संभावना भी रहती है परंतु इस धंधे में कभी कोई हानि नहीं होती। यह पीढ़ी दर पीढ़ी लाभकारी धंधा है।
एक बार हरिद्वार में एक व्यक्ति आया। हर की पैड़ी पर आरती के समय उसने देखा कि कुछ लोग रसीद काट रहे हैं। उसे कम की तलाश थी। ऐसे में उसने रसीद काटने वाले व्यक्तियों से संपर्क बढ़ाया और धीरे-धीरे उस धंधे में शामिल हो गया। इसी बीच खड़खड़ी रोड पर उसे रहने की एक जगह मिल गए। धीरे-धीरे उसने अपने दाढ़ी और बाल बढ़ाने लगा।
उसकी आवाज तेज थी। बोलने में भी बहुत तेज तर्रार था। धीरे-धीरे वह एक आश्रम के महाराज का नजदीकी बन गया। वह महाराज का कृपा पात्र भी बहुत जल्दी बन गया। कुछ वर्षों बाद मुख्य महाराज जी नहीं रहे तो वह गुरु गद्दी का मालिक बन बैठा।
दाढ़ी बाल तो उसने पहले ही बड़ा रखे थे इसी बीच वह गेरूआ भी पहनने लगा। परिवार में वह सबसे बड़ा था। उसके अन्य तीनों भाई जब देखे की बड़े भैया का धंधा तो बड़ा सुंदर है। उन्होंने भी इस धर्म के धंधे पर हाथ फैलाने का प्रयास किया।
देखते ही देखते चारों भाइयों का यह धंधा पूरे हरिद्वार क्षेत्र में फैल गया। वह सभी दूर क्षेत्र के गांव में भी धर्म का प्रचार प्रसार किया करते जिससे उनके शिष्यों की संख्या भी बढ़ने लगी।
बड़े भाई जिसका धंधा पहले से ही अच्छा चल रहा था ।उसने राजनीति में भी जाने का प्लान बनाया और विधायकी लड़ गया। उसके भाग्य ने साथ नहीं दिया और वह विधायक तो नहीं बन पाया। परंतु राजनेताओं से साठ गांठ के कारण राजनीति में अच्छी जगह बना ली। अब तो उसकी बल्ले बल्ले हो गई ।
बाबागिरी के साथ राजनीति भी चमक गई। सारे विधायक सांसद मंत्री संत्री अब उसके यहां बिना हाजिरी लगाई कभी कोई चुनाव नहीं लड़ते। जिस नेता पर उसकी कृपा हो जाए समझो उसकी सफलता की गारंटी निश्चित है।
इसी के साथ बह अपना बहुत बड़ा आश्रम सरकारी जमीन पर बना लेता है। जब सारे मंत्री संत्री उसी के हैं तो कौन कार्रवाई कर सकता है उस पर। जनता तो यही देखते हैं कि बाबा कितना रौबदार है। देखो ना सारे मंत्री संत्री बाबा के चरणों में लोटते रहते हैं। बाबा गीरी का धंधा एक बार चल जाए तो आप हजारों बीघा सरकारी जमीन पर सरकार की आंखों में धूल झुक कर इकट्ठा कर सकते हैं।
उसके अन्य भाइयों ने भी इतने तो समृद्ध नहीं हुए फिर भी अच्छे खासे दौलत इकट्ठा कर लिया। दुनिया को सब माया है, क्या लेकर आए थे क्या लेकर जाओगे? का उपदेश देते कब यह बाबा लोग बिजनेस मैन बन जाते हैं पता ही नहीं चलता । आखिर जनता कब समझेगी धर्म एक धंधे के अलावा कुछ नहीं है। इसमें धर्मगुरु स्वर्ग नरक, पुण्य पाप, मुक्ति, ईश्वर, पुनर्जन्म, भजन कीर्तन आदि के माध्यम से दुकान चलाने वाले दुकानदार हैं। जो जितनी अच्छे लच्छेदार भाषा में अपनी बातों को जनता के सिर में डाल सकता है वही सबसे अच्छा बाबा कहलाता है।
जो बच्चा कभी एक फटे पुराने कपड़े लेकर हरिद्वार आया था वही आज धर्म की दुकान चलाकर अरबों का साम्राज्य खड़ा कर लेता है। अपना ही नहीं बल्कि अपने भाइयों का भी साम्राज्य खड़ा कर देता है। इस धंधे में सबसे ज्यादा लूटती हैं तो महिलाएं क्योंकि उन्हें बेवकूफ बनाना अति सरल होता है।
हां बाबा हां बाबा कहते हुए वह बाबाओं के चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसी में आवश्यकता है कि जनता को जागृत करने की। वह इस धंधे की वास्तविकता को समझे। अपने जीवन की गाढ़ी कमाई को अपने बच्चों की शिक्षा में खर्च करें। स्वयं भी अच्छे से खाए पिए। धर्म का धंधा अधिकांशत गरीबी इलाकों में ज्यादा फलता फूलता है। क्योंकि वहां अशिक्षा भी ज्यादा मात्रा में पाई जाती है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )