दिल है ये अब तेरे हवाले
दिल है ये अब तेरे हवाले
ठुकरा दे इसे चाहे तू या अपना बना ले
महबूब मेरा दिल है ये अब तेरे हवाले
उन पर भी नज़र डाल कभी ऐ मेरे मौला
मिलते हैं जिन्हें खाने को बस सूखे निवाले
मझधार में है नाव मेरी जग के खिवैया
ऐ श्याम ज़रा आके मुझे अब तू बचाले
सूरत पे भला उनकी यक़ीं आए भी क्यों कर
तन के तो हैं उजले वो मगर मन के हैं काले
संसार की नज़रें हैं बुरी, जाऊँ कहाँ मैं
माँ आके मुझे आज तू आँचल में छिपाले
भटका हूँ बहुत तेरे लिए राहे वफ़ा में
देते हैं गवाही ये मेरे पाँव के छाले
हम जीते रहे जिनके लिए ख़ुद को भुला कर
मीना वही देते हैं हमें ज़ह्र के प्याले
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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