Do joon ki roti
Do joon ki roti

दो जून की रोटी

( Do joon ki roti )

 

दो जून की रोटी को
खून पसीना बहा कर
पाना चाहता सुकून
दिन भर की थकान से

 

घर से निकलता मानव
दो जून की रोटी को
बेहाल हो गया मनुज
हालातों के सामने

 

दो जून की रोटी की
दिनोंदिन चिंता खा रही
ऊपर से महंगाई
बढ़ बढ़ आंख दिखा रही

 

घर पर रहे कैसे हो
फिर जुगाड़ दो जून का
श्रमिक परेशान दिखता
माहौल हो सुकून का

 

रोटी कपड़ा और मकान
चंद सांसों की डोर
भागदौड़ भरी जिंदगी
ना कहीं चैन की ठौर

 

दुनिया सी गोल मटोल
कभी मोटी कभी पतली
चिकनी चुपड़ी सबको भाती
रोटी क्या क्या खेल दिखाती

 

कोई परदेश को जाता
नौकरी हजूरी लगाता
आंधी तूफां सर्दी सहता
सरहद पर सेनानी रहता

 

रोटी का मतलब मेहनत
स्वाभिमान से भरपूर
प्रेम पूर्वक रोटी बांटो
रहो जग में मशहूर

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

दहलीज | Dahleez kavita

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here