डॉक्टर साहब का संघर्ष | लघुकथा
एक अस्पताल में नर्स और डाक्टर की कहा सुनी चल रही थी –
नर्स ने बड़े गुस्से से मेज पर फाइल पटक कर कहा-
आप भी सफेद कोट पहनते हो मैं भी सफेद कोट पहनती हूँ,
जितना काम आप कर लेते हो उससे कहीं ज्यादा काम मैं भी कर लेती हूँ- पता नहीं आप लोग किस लिए अकड़ते हुए चलते हो?
डॉक्टर साहब के चेहरे पर मुस्कुराहट की एक रेखा खिंच गई,और बोले बिल्कुल सही कहा आपने पर मेरे संघर्ष की कहानी अलग है,पहले मैंने चिकत्सा प्रवेश परीक्षा के लिए दो वर्ष तक मेहनत किया रिश्तेदारों पड़ोसियों के ताने सुने,
सर्दी गर्मी वर्षात की परवाह न करते हुए दिन रात एक कर दिया,
तब जाकर एक चिकत्सा महाविद्यालय में प्रवेश लिया,साढ़े पांच वर्ष कड़ी मेहनत के बाद स्नातकोत्तर की उपाधि के लिए फिर से कड़ी मशक्त की मानव जाति के सेवा के लिए स्वस्थ समस्याओं की जिम्मेदारी लेते हुए दिन रात आँखों को आराम दिये बिना घर परिवार त्याग कर अस्पतालों में एक विभाग से दूसरे विभाग में भटका, मरीजों की गालियाँ सुनी दुआएँ भी ली तब जाकर आज आपके सामने खड़ा हूँ,और सरलता से आप जैसी नर्सों की शिकायतें सुन रहा हूँ,
“धरती का भगवान” यूँ ही नहीं कहा जाता इसके लिए किशोरा अवस्था से लेकर जवानी तक का पूरा समय संघर्ष रूपी भट्ठी में जलाना पड़ता है,
डॉक्टर और सफेद कोट आपके लिए एक साधारण सा शब्द है लेकिन हम लोगों के लिए परिश्रम त्याग तपस्या की निशानी है||
आनंद त्रिपाठी “आतुर “
(मऊगंज म. प्र.)