प्रथम पूज्य आराध्य गजानंद

गणेश स्तुति

( Ganesh Stuti )

 

कवि जन की कलम हो तेजस्वी कुछ ज्ञान प्रकाश दो गणपति जी
निज सेवक जान अनुग्रह का वरदान दो मेरे गणपति जी
हम सबके नाव खेवैया हो तुम पालक सृष्टि रचैया हो
हो मातु पिता गुरु स्वामी तुम कण- कण में तुम्हीं बसैया हो
संताप कष्ट हो या उत्सव तुम को ही पूजा जाता है
भक्तों के संकट हरने प्रभु कोई दूजा नहीं आता हैं
मेरे प्रेम अश्रु को चरणों में स्थान दो मेरे गणपति जी
निज सेवक जान अनुग्रह का वरदान दो मेरे गणपति जी

लड्डू का भोग या दुर्वा हो गुड़हल गेंदा तुम्हें भाता है
एक प्रेम डोर का बंधन है प्रभु जनम- जनम से नाता है
चूहे की सवारी कर प्रभु जी छोटों का मान बढ़ाया है
महिमा सब वेद पुराणों ने ऋषि मुनियों ने भी गया है
हम मूढ़ अंकिचन जन को कुछ ज्ञान तो दो मेरे गणपति जी
निज सेवक पर उपकार करो वरदान दो मेरे गणपति जी

मस्तक में ब्रह्म लोक लिये आँखों में लक्ष्य संजोये हो
कानों में वैदिक मंत्र भरे शिव नाम में ही प्रभु खोये हो
उदर में सुख समृधि सृजन ब्रह्मांड नाभि में बसता है
हाथों में पालन पोषण का सब भार तुम्हारें रहता है
तेरे अनुकम्पा से विधनेश्वर् सब कार्य सहज हम करते हैं
ले नाम प्रभु वक्रतुण्ड सुखमय से हम सब रहते हैं
मेरे प्रेम अश्रु को चरणों में स्थान दो मेरे गणपति जी
निज सेवक जान अनुग्रह का वरदान दो मेरे गणपति जी||

Anand Tripathi

आनंद त्रिपाठी “आतुर “

(मऊगंज म. प्र.)

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