
सागर फैला दर्द है पर्वत फैली पीर
( Sagar phaila dard hai parwat phaile peer )
सागर फैला दर्द है, पर्वत फैली पीर।
अश्रुधार मोती बरसे, नैना बरसे नीर।
मन मेरा घायल हुआ, चित्त थोड़ा बेचैन।
अंधियारी निशा हुई, कैसे गुजरे रैन।
संकट के बादल घने, बरसे मूसलाधार।
पीर हर लो परमात्मा, कर दो बेड़ा पार।
दीन दुखी दुर्बल मिले, पीर भरे लाचार।
कौन सुने इस जगत में, हे जग के करतार।
समझ सके ना दर्द को, जान सके ना पीर।
दुनिया मतलब की भई, नैन बह चला नीर।
घट हो भाव दर्द भरे, कविता रचती पीर।
शब्द बाण चले लेखनी, पीर धनुष तूणीर।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )